Book Title: Samurchhim Manushuya Agamik Aur Paramparik Satya
Author(s): Yashovijaysuri, Jaysundarsuri
Publisher: Divyadarshan Trust

View full book text
Previous | Next

Page 124
________________ संमूर्च्छिम मनुष्य : आगमिक और पारंपरिक सत्य परिशिष्ट १ उद्भुत शास्त्रसंदर्भों की सूचि अचित्तानामपि . अणुग्गए सूरिए इति निशीथे 'अणुग्गए सूरिए' - इस प्रकार अट्ठ पवयणमाताओ अत्रापि संमूर्च्छिममनुष्यविषये. अंतो मणुस्सखित्ते. अंतोमुहुत्ताउया. अंतो णिवेसणस्स काइभूमिओ अथ मार्गान्तराभावात्तेनैव गतः असंसत्तगहणी उन्हे वोसिरति असंसत्तगहणी तेण ण आगम में उच्चार इमं कारणं - जं संजमनिमित्तं. इस आगम पाठ में. उच्चार - प्रश्रवण- खेल. उच्चार-प्रस्रवणादिरक्षणे उच्चार- पासवण - खेलमत्तए उडुबद्धे रयहरणं, वासावासासु उभओ नहसंठाणा... उभयोः पार्श्वयोः नखसंस्थाना एगिंदिय-नेरइया . एता एव योनी: संवृत . एवमुक्ते सति ११० सौ श्रावक ३४ ५८ ५८ .३ ७ ३९ २४ ४८ ७० ८९ ८९ २७ ७४ १४ ४ १२ ७८ ७२ ७२ ७२ २१ २१ ६६

Loading...

Page Navigation
1 ... 122 123 124 125 126 127 128 129 130 131 132 133 134 135 136 137 138 139 140 141 142 143 144 145 146 147 148