Book Title: Samurchhim Manushuya Agamik Aur Paramparik Satya
Author(s): Yashovijaysuri, Jaysundarsuri
Publisher: Divyadarshan Trust

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Page 125
________________ ............. संमूर्छिम मनुष्य : आगमिक और पारंपरिक सत्य औदारिकम्, उदारं .......... औदारिकस्य मनुष्य ......... कइविहा णं भंते !.......... कइविहा णं... तत्र ... ......... कप्पइ निग्गंथीणं अंतो लित्तं . कर्मभूमिषु चक्रास्त्रहलभृद् कहि णं भन्ते ! ... कहि णं भंते ! सम्मूच्छिममणुस्सा ....... काईयभूमी अप्पा.. किंची सकायसत्थं किंची ........... किश्चित् शस्त्रं स्वकाय एव............. कूवे वोसिरति, वावीए वोसिरति.......... .......... खेलमल्लकस्य भस्मना ........... घर-वावि-वच्च-गोवय-ठिय ..... चउभागावसेस .... चक्रिस्कन्धावार .............. ........... छक्काय चउसु लहुगा, परित्त....... छक्कायत्ति पुढवादी .............. छप्पन्नाए अंतरदीवेसु ............. ........... जे भिक्खू उच्चार-पासवणं.......... जे भिक्खू तओ ... जे भिक्खू राओ वा वियाले... जे भिक्खू साणुप्पए उच्चार ......... जो भिक्षु दिन में............. जो साधु या साध्वी.......... ....... ......४७

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