Book Title: Samurchhim Manushuya Agamik Aur Paramparik Satya
Author(s): Yashovijaysuri, Jaysundarsuri
Publisher: Divyadarshan Trust
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संमूर्च्छिम मनुष्य : आगमिक और पारंपरिक सत्य
मात्रक रखने की बात क्यों की गई ? तीन-तीन श्लेष्ममल्लुक रखने के पीछे आशय यह है कि "शेषकाल के दौरान जब 'श्लेष्म नहीं सूखेगा' वैसा ज्ञात हो तब पुरानी श्लेष्मयुक्त भस्म खुली जगह में परठ कर नई भस्म उसमें भर सकते हैं । वर्षाकाल में जब मुसलाधार बारिश गिर रही हो तब 'श्लेष्म अब इसमें नहीं सूखेगा' - वैसी भस्म हो जाने पर भी खुले में उस भस्म को परठ नहीं सकते, क्योंकि वर्षा चालु है । तो वैसे समय उसी मल्लक में श्लेष्म परठ कर संमूर्च्छिम मनुष्य की विराधना करने से तो अच्छा यही है कि तीन मात्रक रख कर, क्रमशः योग्य रूप में उसका उपयोग कर के संमूर्च्छिम की विराधना से बचते रहना । यही साधुता को सुहाता मार्ग है । "
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इसलिए निशीथभाष्य एवं निशीथचूर्णि में
"उच्चार- पासवण - खेलमत्तए तिण्णि गेण्हंति । ” (३१७२) " वरिसाकाले उच्चारमत्तया तिण्णि, पासवणमत्तया तिण्णि, तिण्णि खेलमत्तया । एवं णव घेत्तव्वा । " इस तरह स्पष्टतया नव मल्लक लेने का विधान अर्थात् श्लेष्म के तीन मात्रक लेने का विधान किया है। एक ओर बात याद रखें कि ये नव-नव मल्लक प्रत्येक साधु को ग्रहण करने की उपधि है, समस्त गच्छ की समूची नहीं ।
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अब यदि संमूर्च्छिम मनुष्य की विराधना अपनी प्रवृत्ति से अशक्य ही हो तो उपर्युक्त प्रकार से श्लेष्म के सूख जाने का प्रबंध करना अनावश्यक बन जाता है । तो फिर अपरिग्रहव्रत की सापेक्षता बनाए रखने के लिए प्रत्येक साधु चातुर्मास में तीन के बजाय सिर्फ एक ही श्लेष्ममात्रक रखे तो भी क्या हर्ज़ ? सब साधुओं के बीच अथवा पांचसात साधु के बीच कफ परठने का एक ही मल्लुक रखने का विधान क्यों नहीं किया? सात दिन निरंतर मुसलाधार बारिश गिरे और सख़्त कफ हो गया हो तो भी एक मल्लक = मात्रक भी कफ से पूरा भरेगा नहीं । हाँ ! वह सूखेगा नहीं, ऐसा बन सकता है । परंतु यदि संमूर्च्छिम मनुष्य की
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