Book Title: Samurchhim Manushuya Agamik Aur Paramparik Satya
Author(s): Yashovijaysuri, Jaysundarsuri
Publisher: Divyadarshan Trust
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संमूर्छिम मनुष्य : आगमिक और पारंपरिक सत्य निवार्य हो तो रात्रि के समय ही परठना शास्त्रकारों को इष्ट है। यह बात बृहत्कल्पसूत्र की साक्षी में (पृ. ६५) हम ऊपर देख चुके हैं।
__ अत: यत्र कुत्रचित् प्राप्त होने वाली मात्रक में मूत्रादि को पूरी रात रखने की बात की अन्यान्य आगमिक संदर्भो के साथ तुलना किए बिना, यूँ ही ऊपर-ऊपर का अर्थ पकड़ कर, उसका फलितार्थ ‘संमूर्छिम मनुष्य अविराध्य = अहिंस्य = अपनी कायिक हिलचाल वगैरह से अवध्य हैं' - ऐसा निकालना वह फलतः असंख्य संमूर्छिम पंचेन्द्रिय बादर त्रस मनुष्य की विराधना में पर्यवसित होने से महापातक स्वरूप बन सकता है। आगमवफ़ादार मनीषी! सावधान !
अब तक रामलालजी के B-1+2 क्रमांक विचारबिंदु का परीक्षण हो चुका। (उनके लेख के लिए देखिए : परिशिष्ट-४) . आचारांग सूत्र का गर्भितार्थ
REGERME B-3 क्रमांक विचारबिंद में रामलालजी महाराज (१)आचारांगसूत्र
(१) आचारांगसूत्र का पाठ इस प्रकार है :
___ “से भिक्खु वा [भिक्खुणी वा] जाव समाणे अंतरा से वप्पाणि वा फलिहाणि वा पागाराणि वा अग्गलाणि वा अग्गलपासगाणि वा सति परक्कमे संजयामेव परक्कमेज्जा, णो उज्जुयं गच्छेज्जा।
केवली बूया - आयाणमेतं । से तत्थ परक्कममाणे पयलेज वा पवडेज वा से तत्थ पयलमाणे वा पवडमाणे वा तत्थ से काए उच्चारेण वा पासवणेण वा खेलेण वा सिंघाणएण वा वंतेण वा पित्तेण वा पूएण वा सुक्केण वा सोणिएण वा उवलित्ते सिया। तहप्पगारं कायं णो अणंतरहियाए पुठवीए णो ससणिद्धाए पुढवीए, णो ससरक्खाए पुढवीए, णो चित्तमंताए णो चित्तमंताए लेलूए, कोलावासंमि वा दारुए जीवपतिहिते सअंडे सपाणे जाव संताणएसिलाए, णो आमज्जेज वा णो पमज्जेज वा संलिहेज वा णिल्लिहेज वा उवलेज वा उव्वट्टेज वा आतावेज वा पयावेज वा।
से पुव्वामेव अप्पससरक्खं तणं वा पत्तं वा कटुं वा सक्करं वा जाएज्जा, जाइत्ता से तमायाए एगंतमवक्कमेज्जा, अवक्कमेत्ता अहे झामथंडिल्लंसि वा जाव अण्णतरंमि वा तहप्पगारंसि पडिलेहिय पडिलेहिय पमजिय पमज्जिय ततो संजयामेव आमज्जेज वा जाव पयावेज वा।"
(आचारांग सूत्र - श्रुतस्कंध-२, अध्ययन-१, उद्देशक-१, सूत्र-३५३)