Book Title: Samurchhim Manushuya Agamik Aur Paramparik Satya
Author(s): Yashovijaysuri, Jaysundarsuri
Publisher: Divyadarshan Trust
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संमूर्च्छिम मनुष्य : आगमिक और पारंपरिक सत्य की बात ले कर उपस्थित हुए हैं। उनके कथन का सार इतना है कि :
“आचारांग सूत्र में मल-मूत्रादि से लिप्त पैर को अचित्त कंकरपत्थर वगैरह से साफ करने का विधान है। यदि संमूर्छिम मनुष्य की विराधना शक्य होती तो ऐसा विधान नहीं किया होता। जैसे बारिश से भीगी हुई काया को पोंछने का श्रीदशवकालिक सूत्र (७/७) में निषेध किया है वैसे मल-मूत्र में भी यदि संमूर्छिम मनुष्य की विराधना शक्य होती तो उसकी सफाई का भी निषेध किया होता।"
परंतु रामलालजी महाराज का ऐसा कथन भी आगमिक तथ्य से विपरित दिशा का ज्ञात होता है। अमुक विचारबीज - o आचारांग सूत्र का नवनीत परोसते विचारमंथन
TERRORIHITERE (१) मार्ग में पड़े हुए विष्ठा वगैरह मनुष्य के ही हो वैसा नियम नहीं है।
गाय के गोबर वगैरह भी हो सकते हैं, कादव-कीचड़ भी हो सकता है। तथा संमूर्छिम मनुष्य की उत्पत्ति तो सिर्फ मनुष्य संबंधी अशुचिओं में ही मानी गई है - यह बात स्मर्तव्य है।
लोगों के आवागमन के मार्ग में गोबरादि या कीचड़ादि से पैर के लिप्त होने की संभावना ही अधिक है । अत एव आचारांगसूत्र के प्रस्तुत सूत्र की वृत्ति में प्रमाणभूत प्राचीन वृत्तिकार श्रीशीलांकाचार्यजी बताते हैं कि : “अथ मार्गान्तराभावात्तेनैव गतः प्रस्खलितः सन् कर्दमाधुपलिप्तकायो नैवं कुर्यादिति दर्शयति - स यतिः तथाप्रकारं = अशुचिकर्दमाद्युपलिप्तं कायमन्तर्हितया....” इत्यादि ! यहाँ स्पष्टतया कादव-कीचड़ादि का ग्रहण किया है, क्योंकि मार्ग में उससे पैर के लिप्त होने की संभावना विशेष है । अतः आचारांग के उस सूत्र के द्वारा भी ‘संमूर्छिम मनुष्य की विराधना नहीं होती' - वैसा सिद्ध नहीं होता।
(२) एक ओर बात यह है कि अशुचि के ऊपर पैर गिरने के कारण
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