Book Title: Samurchhim Manushuya Agamik Aur Paramparik Satya
Author(s): Yashovijaysuri, Jaysundarsuri
Publisher: Divyadarshan Trust
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संमूर्छिम मनुष्य : आगमिक और पारंपरिक सत्य संमूर्छिम मनुष्य की उत्पत्ति होती है। अतः विस्तृत भूमि में अलग-अलगप्रविरल रूप में इस तरह पटें कि जिससे वे शीघ्रतया सूख जाएँ, संमूर्छिम की विराधना न हो।' ऐसी सावधानी बरतने में ही साधुत्व की सुरक्षा समाविष्ट है। यह बात किसी भी आगममनीषी की प्रतीति में आए वैसी है।
इस तरह निशीथसूत्र के तृतीय उद्देशक के सूत्र के विस्तृत विशदीकरण के द्वारा रामलालजी महाराज के B-1 क्रमांक विचारबिंदु की सत्यता (!?) की परीक्षा हो चुकी। इस विषय में विशेष बाबत आगे बृहत्कल्पसूत्र के एक पाठ के द्वारा पुनः देखेंगे। . घटीमात्रक सूत्र का स्पष्टीकरण | 圖圖圖圖圖圖圖圖圖圖圖
अब B-2 क्रमांक विचारबिंदु में श्रीरामलालजी महाराज घटीमात्रक की बात कर के पुनः वही बात दोहरा रहे हैं कि 'साध्वीजी भगवंतों को पूर्ण रात्रि तक प्रस्रवण रखने की सूचना करने से शास्त्रकार भगवंत संमूर्छिम मनुष्य अविराध्य हैं-वैसा बता रहे हैं।' परंतु इस बात की गहराई से जाँच-पडताल करने पर शास्त्रकारों का आशय भिन्न ही ज्ञात होता है।
एक बात ध्यातव्य है कि घटीमात्रक नामक उपकरण सिर्फ श्रमणीवर्ग के लिए ही अनुज्ञात है। श्रमणों को घटीमात्रक रखना निषिद्ध है।
बृहत्कल्पसूत्र के प्रथम उद्देशक के दो सूत्र देख लें :
“कप्पड़ निग्गंथीणं अंतो लित्तं घडिमत्तयं धारित्तए वा परिहरित्तए वा ।" (सू.१६)
“नो कप्पइ निग्गंथाणं अंतो लित्तं घडिमत्तयं धारित्तए वा परिहरित्तए वा ।" (सू.१७)
श्रमणीवर्ग को ही घटीमात्रक की अनुज्ञा दी गई है, श्रमणों को नहीं - यह बात ऐसा सूचित करती है कि श्रमणिओं को रात्रि के समय