Book Title: Samurchhim Manushuya Agamik Aur Paramparik Satya
Author(s): Yashovijaysuri, Jaysundarsuri
Publisher: Divyadarshan Trust
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संमूर्छिम मनुष्य : आगमिक और पारंपरिक सत्य की बात की क्या आवश्यकता थी?
चलें, अब तक प्रस्तुत की गई बातों के शास्त्राधार देख लें :बृहत्कल्पसूत्र - उद्देशक-१, सूत्र क्र. ४८
“नो कप्पइ निग्गंथस्स एगाणियस्स राओ वा वियाले वा बहिया वियारभूमि वा विहारभूमि वा निक्खमित्तए वा पविसित्तए वा।
कप्पड़ से अप्पबितियस्स वा अप्पतइयस्स वा राओ वा वियाले वा बहिया वियारभूमि वा विहारभूमि वा निक्खमित्तए वा पविसित्तए वा।"
इस सूत्र की व्याख्या में बृहत्कल्पभाष्यकार (गा.३२०९) एकाकी रात्रिनिर्गम करने में जो दोष बताते हैं, वही दोष निशीथसूत्र के तृतीय उद्देशक के पूर्वोक्त सूत्र की व्याख्या में निशीथभाष्यकार (गा.१५०४) रात्रि को कायिकी परठने हेतु बाहर जाने में बताते हैं। अतः निशीथभाष्यकार ने वहाँ जो दोष बताए हैं वे एकाकी श्रमण को प्रस्रवणादि परठने हेतु जाने के विषय में बताए हैं - वैसा फलित होता है, मूत्रादि परठने की पूरी पाबंदी फरमाने हेतु नहीं। अन्यथा यहाँ वही दोष दर्शाने पर भी दो, तीन साधु भगवंतों को रात्रि में मूत्रादि परठने की जो अनुज्ञा मूल सूत्र में दी है - वह असंगत ही साबित होगी। बृहत्कल्पभाष्यकार ने वे तमाम दोष ‘एकाकी साधु रात्रि के समय बहिर्गमन करे’ उस संदर्भ में ही बताए
तत्पश्चात् बृहत्कल्प में ऐसा सूत्र है :
“नो कप्पड़ निग्गंथीए एगाणियाए राओ वा वियाले वा बहिया वियारभूमिं वा विहारभूमि वा निक्खमित्तए वा पविसित्तए वा।
कप्पड़ से अप्पबिइयाए वा अप्पतइयाए वा अप्पचउत्थीए वा राओ वा वियाले वा बहिया वियारभूमि वा विहारभूमि वा निक्खमित्तए वा पविसित्तए वा ॥ सू. ४९।।।
इन दो सूत्रों का संक्षिप्त तात्पर्यार्थ इतना ही है कि :
निग्रंथ एवं निग्रंथी को रात्रि के समय अकेले विचारभूमि (विचारभूमि दो प्रकार की होती है - (१) कायिकी के लिए, (२)