Book Title: Samurchhim Manushuya Agamik Aur Paramparik Satya
Author(s): Yashovijaysuri, Jaysundarsuri
Publisher: Divyadarshan Trust
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संमूर्छिम मनुष्य : आगमिक और पारंपरिक सत्य ॐ स्त्री-पुंसंयोग की स्पष्टता
अपने A-4 क्रमांक विचारबिंदु में रामलालजी महाराज बताते हैं कि : “शरीर के भीतर रहे मलादि में सम्मूर्छिम मनुष्यों की उत्पत्ति सुनिश्चित होने का एक ओर महत्त्वपूर्ण कारण यह भी है कि उपर्युक्त आगमपाठ में आगमकारों ने स्त्री-पुरुषसंयोग में भी सम्मूर्छिम मनुष्यों की उत्पत्ति मानी है। स्त्री-पुरुषसंयोग मनुष्य स्त्री के शरीर के भीतर होता है एवं वहाँ सम्मूर्छिम मनुष्यों की उत्पत्ति स्पष्ट रूप से मानी गई है। इसी तरह शरीर के भीतर रहे मलादि में सम्मूर्छिम मनुष्यों की उत्पत्ति हो सकती है।" __यह कथन भी कुछ सूक्ष्म विचारणा माँग लेता है। स्त्री-पुरुष का संयोग अंततोगत्वा शुक्र-शोणित के संयोग में ही पर्यवसित होता है। शुक्र-शोणित के संयोग को प्रस्तुत में स्त्री-पुरुष का संयोग कहा गया है। यह मिश्रण स्वयं अचित्त है, मनुष्यात्मप्रदेश से अधिष्ठित नहीं। इस बाबत में अधिक स्पष्टता करने से पहले अमुक शास्त्रपाठ देख लें।
जीवसमास प्रकरण में वृत्तिकार श्रीमलधारि हेमचंद्रसूरि महाराज प्राचीन पूर्वर्षिओं की परंपरा के आधार पर बताते हैं कि - _ "मनुष्ययोनिस्वरूपमिदं पूर्वसूरिभिलिखितमवलोक्यते । तद् यथा स्त्रीणां नाभेरधः शिराद्वयाऽधस्तादधोमुखसंस्थितकोशाकारा योनिः । तस्याश्च बहिचूतमञ्जरिकल्पा मांसस्फोटिका ऋतुकाले स्फुटन्ति, तेभ्यः शोणितं गलति । तत्र केचन रक्तावयवाः योनेरन्तर्विशन्ति, तांश्च पुरुषशुक्रसम्पृक्तानासाद्य जीवः समुत्पद्यते।''(जीवसमास गा. ४५ वृ.)
“अचित्तानामपि शुक्र-शोणितपुद्गलानां तत्र सद्भावात् ।" (जीवसमास गा. ४६ वृ.)
यह बात स्थानकवासी एवं मूर्तिपूजक दोनों परंपराओं को मान्य
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