Book Title: Samurchhim Manushuya Agamik Aur Paramparik Satya
Author(s): Yashovijaysuri, Jaysundarsuri
Publisher: Divyadarshan Trust
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संमूर्छिम मनुष्य : आगमिक और पारंपरिक सत्य कारण का सहारा अवश्य लेते हैं। अतः तर्कपूतप्रज्ञासंपन्न प्राज्ञ सर्वदा ऐसी ही कल्पना का स्वीकार करेगा कि जिसमें दृष्ट कारणों का सहारा मिलता रहे। दृष्ट कारण अत्यंत प्रतिकूल होने पर भी सिर्फ अदृष्ट के आधार पर होने वाली परिकल्पनाओं से वह दूर रहता है, यदि वह अत्यंत निराधार और सिर्फ अपनी मान्यता के आधार पर परिकल्पित हो तो।
यह बात तो निर्विवाद रूप से प्रमाणित हो रही है कि शरीर के बाहर ही रहे हुऐ रक्त वगैरह संमूर्छिम मनुष्य की उत्पत्ति के कारण बन सकते हैं। संमूर्छिम मनुष्य की उत्पत्ति के स्थान के रूप में जल्ल = शरीर का मैल, कान-नाक वगैरह के मैल को भी स्थान मिला है। क्या ये सब शरीर के अंदर संभवित हैं? पसीना, जो संमूर्छिम मनुष्य की उत्पत्ति का कारण है, वह शरीर के अंदर संभवित है या बाहर?
__जीवाभिगम संग्रहणी प्रकरण का संदर्भ
प्राचीन आचार्य विरचित जीवाभिगम संग्रहणी ग्रंथ में संमूर्छिम मनुष्य को संलग्न कुछ श्लोक दिए गए हैं :
“अंतो मणुस्सखित्ते अड्डाईदीववारिनिहिमज्झे। पन्नरसकम्मभूमीसु तीसाइ अकम्मभूमीसु ॥ १५९।। छप्पन्नाए अंतरदीवेसुं गन्भया य जे मणुआ। तेसिं उच्चारेसुं पासवणेसुं च खेलेसुं ।। १६० ।। सिंघाणएसु वंतिसु पित्तेसु च सोणिएसु सुक्केसु । तह चेव सुक्कपुग्गलपरिसाडेसु व मयगेसु ।।१६१।। थीनरसंजोगेसु व पुरनिद्धमणेसु जल्ल तह चेव । सव्वासुइठाणेसु वि संमूच्छिममाणुसा हुंति ।।१६२ ।।