Book Title: Samurchhim Manushuya Agamik Aur Paramparik Satya
Author(s): Yashovijaysuri, Jaysundarsuri
Publisher: Divyadarshan Trust
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संमूर्च्छिम मनुष्य : आगमिक और पारंपरिक सत्य
कि अशुचि को कोई मनुष्य ढाई द्वीप के बाहर यदि ले जाए तो क्या ? तब जवाब यही होगा कि वह विध्वस्तयोनिक अशुचि को ही ढाई द्वीप के बाहर ले जा पाएगा । संमूर्च्छिम मनुष्य से युक्त ऐसी अशुचि को बाहर नहीं ले जा सकता । जैसे “जिसका शेष अंतर्मुहूर्त्त का ही आयुष्य है, देव जिसका संहरण कर के ढाई द्वीप के बाहर ले जाए तो पुनः ढाई द्वीप के अंदर लाने जितना भी समय न हो - उतना ही जिसका आयुष्य हो वैसे व्यक्ति को कोई देव ढाई द्वीप के बाहर ले जाए तो उस मनुष्य की क्या वहाँ मृत्यु होगी या उसका आयुष्य बढ़ जाएगा ?" ऐसे प्रश्न के जवाब में कहना ही पड़ेगा कि वैसे व्यक्ति का देव द्वारा संहरण होता ही नहीं ।
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इसीलिए तो जीवाभिगमसूत्र की व्याख्या में श्रीमलयगिरि महाराज ( जीवा. प्रति - ३, उद्देश - २, सू. १७७) ने स्पष्टतया बताया है कि "मनुष्याणां जन्म मरणं चात्रैव क्षेत्रे, न तद्बहिः । तथा हि मनुष्याः मनुष्य क्षेत्रस्य बहिर्जन्मतो न भूताः, न भवन्ति, न भविष्यन्ति च । तथा यदि नाम केनचिद् देवेन दानवेन विद्याधरेण वा पूर्वानुबद्धवैरनिर्यातनार्थमेवंरूपा बुद्धिः क्रियते यथायं मनुष्योऽस्मात् स्थानाद् उत्पाट्य मनुष्यक्षेत्रस्य बहिः प्रक्षिप्यतां येनोद्धर्वशोषं शुष्यति म्रियते वेति तथापि लोकानुभावादेव सा काचनाऽपि बुद्धिर्भूयः परावर्त्तते यथा संहरणमेव न भवति, संहृत्य वा भूयः समानयति, तेन संहरणतोऽपि मनुष्यक्षेत्राद् बहिर्मनुष्या मरणमधिकृत्य न भूताः, न भवन्ति, न भविष्यन्ति च । येऽपि जङ्घाचारिणो विद्याचारिणो वा नन्दीश्वरादीनपि यावद् गच्छन्ति तेऽपि तत्र गता न मरणमश्रुवते, किन्तु मनुष्यक्षेत्रसमागता एव । "
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इस तरह, शरीर से बाहर निकली हुई व्युत्सृष्ट अशुचिओं का ढाई द्वीप से बहिर्गमन निवार्य है, परंतु शरीर के अंदर रक्तादि में भी संमूर्च्छिम मनुष्य की उत्पत्ति मान लेने से गर्भज मनुष्य की गति