________________
Vol. XXXVI, 2013
प्राकृत आगम साहित्य : एक विमर्श
123
निष्पक्ष दृष्टि का निर्वाह नहीं हुआ है और अर्धमागधी आगम साहित्य के मूल्य और महत्त्व को सम्यक् प्रकार से नहीं समझा गया हैं ।
पूज्य आचार्य श्री जयन्तसेनसूरि जी ने "जैन आगम साहित्य : एक अनुशीलन" कृति की सृजना जनसाधारण को आगम - साहित्य की विषय-वस्तु की परिचय देने के उद्देश्य से की है, फिर भी उन्होंने पूरी प्रामाणिकता के साथ संशोधनात्मक दृष्टि को निर्वाह करने का प्रयास किया है । इस ग्रन्थ की मेरी भूमिका विशेषरूप से पठनीय हैं ।
Jain Education International
For Personal & Private Use Only
www.jainelibrary.org