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१९८७
विजयशंकर शुक्ल
: देवकुमार जैन ओरियण्टल लाइब्रेरी, आरा में संगृहीत पाण्डुलिपियों की सूची Catalogue of Sanskrit, Prakrit, Aphhramsa and Hindi शीर्षक से दो भागों में किया गया जिसका सम्पादन ऋषभचन्द्र जैन ने किया है ।
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१९८८-२००० : १९८८ में उत्तरप्रदेश सरकार के अन्तर्गत राजकीय पाण्डुलिपि पुस्तकालय, इलाहाबाद के पाण्डुलिपियों की सूची का प्रकाशन संस्कृत वाङ्मय के हस्तलिखित ग्रन्थों की विवरणात्मक सूची शीर्षक से प्रथम खण्ड का प्रकाशन हुआ । इसमें ३८९३ पाण्डुलिपियों का विवरण है। सूची का सम्पादन डॉ. श्याम नारायण पाण्डेय एवं डॉ. श्रद्धानन्द पाण्डेय जी ने किया। इस सूची के साथ ग्रन्थों की अनुक्रमणिका भी दी गई है । इसके द्वितीय खण्ड का प्रकाशन २००० में हुआ जिसका सम्पादन कु. रेखा त्रिवेदी एवं श्री राम अवध यादव ने किया है। इस सूची में काव्यशास्त्र, आयुर्वेद एवं ज्योतिष की पाण्डुलिपियाँ हैं ।
SAMBODHI
१९८८ में ही A Descriptive Alphabetical Catalogue of Manuscripts शीर्षक से उत्कल विश्वविद्यालय के पुस्तकालय में संगृहीत सूची का प्रकाशन हुआ जिसमें ५७८७ पाण्डुलिपियों का विवरण है ष सूची दो खण्डों में विभाजित है । प्रथम खण्ड विवरणातमक सूचना देता है जबकि द्वितीय खण्ड में वर्णक्रमानुसार पाण्डुलिपियों की सूची है जिसका सम्पादन डॉ. ए. के. देव ने किया तथा प्रकाशन उत्कल विश्वविद्यालय, वाणी विहार, भूवनेश्वर से किया गया है ।
१९८८ : विश्वभारती, शान्तिनिकेतन (पश्चिम बंगाल) में उपलब्ध पाण्डुलिपियों की सूची
Descriptive Catalogue of Sanskrit Manuscripts Part-III १९० पाण्डुलिपियों के विवरण के साथ प्रकाशित हुआ । साहित्य से सम्बन्धित पाण्डुलिपियों के इस खण्ड का सम्पादन डॉ. अलकानन्द बनर्जी ने किया था । इसी के खण्ड-४ एवं ५ का प्रकाशन क्रमश: १९९३ से १८६ एवं ९५ पाण्डुलिपियों के विवरण के साथ प्रकाशित हुआ ।
१९८९ : इस वर्ष, Academy of Sanskrit Research मेलुकोटे (कर्णाटक) से Descriptive Catalogue of Sanskrit Manuscripts (विशिष्टाद्वैत वेदान्त) का प्रकाशन हुआ जिसका संकलन विद्वान् एस्. नरसराज भट्टार ने किया । यह प्रकाशन अकेडमी के ग्रन्थमाला संख्या - १३ में प्रो. एम. ए. लक्ष्मीताताचार् के प्रधान सम्पात्व में प्रारम्भ हुआ । मेलुकोटे दक्षिण भारत के बदरिकाश्रम के रूप में प्रसिद्ध है जो भगवान रामानुज की कर्मभूमि है। विशिष्टाद्वैत दर्शन के अध्ययन के साथ अन्य सम्प्रदायों के अध्ययन के लिये यह विशिष्ट केन्द्र है । इस संस्था ने पाण्डुलिपियों के संरक्षण एवं प्रकाशन के लिये विशेष परिश्रम किया है । १९८९ तक यहाँ के संग्रह में ८३१०
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