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माग
Vol. XXXVI, 2013 पउमचरियं : एक सर्वेक्षण
147 (७) पंउमचरियं में भरत और सागर चक्रवर्ती की ६४ रानियों का उल्लेख मिलता है, जबकि दिगम्बर
परम्परा में चक्रवर्तीयों की रानियों की संख्या ९६ हजार बतायी है।३२ अत: यह साक्ष्य भी दिगम्बर
और यापनीय परम्परा के विरूद्ध है और मात्र श्वेताम्बर परम्परा के पक्ष में जाता है । (८) अजित और मुनिसुव्रत के वैराग्य के कारणों को तथा उनके संघस्थ साधुओं की संख्या को लेकर
पउमचरियं और तिलोयपण्णत्ति में मत वैभिन्य है ।३३ किन्तु ऐसा मतवैभिन्य एक ही परम्परा में
भी देखा जाता है अत: इसे ग्रन्थ के श्वेताम्बर होने का सबल साक्ष्य नहीं कहा जा सकता है । (९) पउमचरियं और तिलोयपण्णत्ति में बलदेवों के नाम एवं क्रम को लेकर मतभेद देखा जाता है,
जबकि पउमचरियं में दिये गये नाम एवं क्रम श्वेताम्बर परम्परा में यथावत् मिलते हैं ।३४ अतः इसे भी ग्रन्थ के श्वेताम्बर परम्परा से सम्बद्ध होने के पक्ष में एक साक्ष्य के रूप में स्वीकार किया जा सकता है । यद्यपि यह स्मरण रखना होगा कि पउमचरियं में भी राम को बलदेव भी कहा
गया है। (१०) पउमचरियं में १२ देवलोकों का उल्लेख है जो कि श्वेताम्बर परम्परा की मान्यतानुरूप है ।५ क्योंकि
यापनीय रविषेण और दिगम्बर परम्परा के अन्य आचार्य देवलोकों की संख्या १६ मानते हैं अतः
इसे भी ग्रन्थ के श्वेताम्बर परम्परा से सम्बद्ध होने का प्रमाण माना जा सकता है। (११) पउमचरियं में सम्यक्दर्शन को पारिभाषित करते हुए यह कहा गया है कि जो नव पदार्थों को
जानता है वह सम्यग्दृष्टि है ।२६ पउमचरियं में कहीं भी ७ तत्त्वों का उल्लेख नहीं हुआ है। पं. फलचन्द जी के अनुसार यह साक्ष्य ग्रन्थ के श्वेताम्बर होने के पक्ष में जाता है ।३७ किन्त मेरी दृष्टि में नव पदार्थों का उल्लेख दिगम्बर परम्परा में भी पाया जाता है अतः इसे ग्रन्थ के श्वेताम्बर होने का महत्त्वपूर्ण साक्ष्य तो नहीं कहा जा सकता । दोनों ही परम्परा में प्राचीन काल में नव पदार्थ ही माने जाते थे, किन्तु तत्त्वार्थसूत्र के पश्चात् दोनों में सात तत्त्वों की मान्यता भी प्रविष्ट हो गई । चूँकि श्वेताम्बर प्राचीन स्तर के आगमों का अनुसरण करते थे, अत: उनमें ९ तत्त्वों की मान्यता की प्रधानता बनी रही । जबकि दिगम्बर परम्परा में तत्त्वार्थ के अनुसरण के कारण सात तत्त्वों की प्रधानता बनी रही । जबकि दिगम्बर परम्परा में तत्त्वार्थ के अनुसरण के कारण सात तत्त्वों की प्रधानता स्थापित हो गई।
(१२) पउमचरियं में उसके श्वेताम्बर होने के सन्दर्भ में जो सबसे महत्त्वपूर्ण साक्ष्य उपलब्ध है वह यह
कि उसमें कैकयी को मोक्ष की प्राप्ति बताई गई है२८, इस प्रकार पउमचरियं स्त्री मुक्ति का समर्थक माना जा सकता है। यह तथ्य दिगम्बर परम्परा के विरोध में जाता है। किन्तु हमें यह स्मरण रखना चाहिए कि यापनीय भी स्त्रीमुक्ति तो स्वीकार करते थे अत: यह ग्रन्थ श्वेताम्बर और यापनीय
दोनों परम्पराओं से सम्बद्ध या उनका पूर्वज माना जा सकता है। ' (१३) इसी प्रकार पउमचरियं में मुनि का आशीर्वाद के रूप में धर्मलाभ कहते हुए दिखाया गया है,३९
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