Book Title: Sambodhi 2013 Vol 36
Author(s): Jitendra B Shah
Publisher: L D Indology Ahmedabad

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Page 193
________________ Vol. XXXVI, 2013 स्वातन्त्र्योत्तर भारत में पाण्डुलिपियों का संग्रह एवं सूचीकरण 185 ___ खण्ड १९६२ में प्रकाशित हुआ जिसमें श्वेताम्बर सम्प्रदाय से सम्बन्धित ३६३ पाण्डुलिपियों का विवरण दिया गया है । इसके साथ जो सूची दी गई है वह अत्यन्त महत्त्वपूर्ण है। इनमें ग्रन्थनाम, ग्रंथ, लिपिकार, देवताओं के नाम, जैनेतर सम्प्रदायों में उपलब्ध ग्रन्थ तथा अन्य विवरण इन सूचियों के माध्यम से प्राप्त होते हैं। १९६७ में भाग-१९ के प्रथम खण्ड का द्वितीय उपखण्ड प्रकाशित हुआ जो आख्यान (Narratives) से सम्बन्धित पाण्डुलिपियों की सूची प्रस्तुत करता है । इसके अन्तर्गत ३२१ पाण्डुलिपियों का विवरण है। १९६७ के बाद लगभग दस वर्षों तक भण्डारकर ओरियण्टल रिसर्च इन्स्टीट्यूट, पुणे में सूचीकरण के प्रकाशन का कार्य रुका रहा । १९७६ में पुन: भाग-१६ के द्वितीय खण्ड का प्रकाशन हुआ जिसका संकलन हरदत्त शर्मा जी ने किया । यह खण्ड तन्त्र से सम्बन्धित ५०९ पाण्डुलिपियों का विवरण प्रस्तुत करता है । १९७७ में प्रो. हीरालाल रसिकभाई कापड़िया ने भाग-१९ के द्वितीय खण्ड के उपखण्ड-द्वितीय का संकलन किया जो जैन साहित्य एवं दर्शन की १९३ पाण्डुलिपियों का विवरण प्रस्तुत करता है । ये सभी पाण्डुलिपियाँ श्वेताम्बर साहित्य से सम्बंधित हैं। पुनः १९८७ एवं १९८८ में प्रो. कापड़िया ने भाग-१९ के खण्ड-३ तथा खण्ड-४ के संकलन का कार्य पूर्ण किया । इन दोनों भागों में क्रमशः २५८ एवं ३०५ पाण्डुलिपियों की विवरणात्मक सूची है। इस तरह से १९८८ तक भण्डारकर ओरियण्टल रिसर्च इन्स्टीट्यूट में उपलब्ध पाण्डुलिपियों की विवरणात्मक सूची १९ भागों में प्रकाशित हुई जिसमें कई भागों के एक से अधिक खण्ड तथा उपखण्ड हैं। जिस तरह से प्रो. हीरालाल रसिकदास कपाड़िया ने जैन साहित्य एवं दर्शन की पाण्डुलिपियों के संकलन का कार्य किया ठीक उसी तरह प्रो. सुमित्रा मंगेश को के बाद इस कार्य को डॉ. एस. के. बेलवलकर, डॉ. पी. के. गोडे, एच. डी. शर्मा तथा डॉ. आर. एन. दाण्डेकर ने आगे बढ़ाया । इस श्रृंखला में १९५५ में भाग-९, खण्ड२ जो वेदान्त की ४४५ पाण्डुलिपियों का विवरण प्रस्तुत करता है तथा १९६३ में इसी भाग के खण्ड-२ एवं ३ क्रमशः ३८१ एवं २८० पाण्डुलिपियों के विवरण के साथ प्रकाशित हुये । इसी वर्ष ६८६ पाण्डुलिपियों के विवरण के साथ प्रो. पी. के. गोडे ने प्रथम भाग के द्वितीय खण्ड को पूर्ण किया जो उपनिषद् की पाण्डुलिपियों से सम्बन्धित है। यहाँ की सूची निर्माण की प्रक्रिया में विलम्ब चाहे जितना भी हुआ हो लेकिन सिद्धान्त में कोई परिवर्तन नहीं किया गया । यही कारण है कि कुछ भागों का प्रकाशन बहुत बाद में हुआ । इस क्रम में १९८३ में द्वितीय भाग का द्वितीय खण्ड प्रकाशित हुआ जो व्याकरण की ऐसी पाण्डुलिपियों की सूचना देता है जो पाणिनि परम्परा से हटकर हैं। ये लगभग ३०३ पाण्डुलिपियाँ कातन्त्र व्याकरण, जैनेन्द्र व्याकरण, हेमचन्द्र, Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

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