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Vol. XXXVI, 2013
स्वातन्त्र्योत्तर भारत में पाण्डुलिपियों का संग्रह एवं सूचीकरण
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१९७५
१९७८
: Bibliotheque Nazionale et Universitaire de Strassburg में उपलब्ध ३३४
जैन पाण्डुलिपियों की सूची का संकलन प्रो. चन्द्रभाल त्रिपाठी ने किया जो लाइडेन से के नाम प्रकाशित हुई। : बहुत समय तक एक व्यवस्था थी कि - षडङ्गोवेदोध्येयोज्ञेयश्च अर्थात् वेद का अध्ययन शिक्षा, निरुक्त, व्याकरण, कल्प, छन्द एवं ज्योतिष के साथ करना चाहिए । इनकी
अनुपस्थिति में वेद ज्ञेय नहीं है । शनैः शनैः भारतीय मनीषा के स्वरूप में अभिवृद्धि होती गई और वाङ्मय में चार कोटियाँ बनी-त्रयी-वार्ता-आन्वीक्षिकी-दण्डनीतिश्च । इसमें दण्डनीति अर्थात् कौटिलीय अर्थशास्त्र के अभ्युदय के साथ भारतीय ज्ञान एवं तत्कालीन सामाजिक परिवेश एवं व्यवस्था के परिचय से विश्व पटल पर चित्र ही बदल गया और इसका सम्पूर्ण श्रेय जाता है ओरियण्टल रिसर्च इन्स्टीट्यूट, मैसूर विश्वविद्यालय, मैसूर 'को, जिसके संग्रह में कौटिलीय अर्थशास्त्र की पाण्डुलिपि सुरक्षित है। लगभग पचास हजार पाण्डुलिपियों के इस संग्रह की पहली सूची का प्रकाशन १९७८ में ३०३५ पाण्डुलिपियों के विवरण के साथ प्रारम्भ हुआ। प्रथम भाग में वैदिक संहितायें, ब्राह्मण, भाष्य तथा उपनिषदों की पाण्डुलिपियों की सूची है । यह सूची Descriptive Catalogue of Sanskrit Manuscripts शीर्षक से डॉ. जी. मरूलसिद्धैया के प्रधान सम्पादकत्व में प्रकाशित हुई जो उस समय मैसूर विश्वविद्यालय में संस्कृत भाषा में स्रातकोत्तर अध्ययन विभाग के प्रो. एवं अध्यक्ष के साथ ओरियण्टल रिसर्च इन्स्टीट्यूट के निदेशक भी थे । इस सूची के प्रकाशन के क्रम में १९७८ में ही भाग-२ का प्रकाशन हुआ जिसमें कल्पसूत्र की ४९१ पाण्डुलिपियों का विवरण है। इसी वर्ष भाग-४ का प्रकाशन पहले हो गया लेकिन भाग-३ का प्रकाशन १९७९ में हुआ । ये सभी भाग दो खण्डों में प्रकाशित हुये । प्रथम खण्ड के अन्तर्गत तालिका क्रम में पाण्डुलिपियों की सूची दी गई तथा द्वितीय खण्ड में पाण्डुलिपियों के कुछ अंश दिये गये । इस तरह से भाग चार तक वैदिक साहित्य की पाण्डुलिपियों के साथ-२, स्मृति, निबन्धग्रन्थ, शान्ति, पूजा आदि लगभग १३, १८७ पाण्डुलिपियों का विवरण दिया गया । १९८० एवं ८१ में भाग-५ एवं भाग-६ का प्रकाशन हुआ जिसके अन्तर्गत क्रमशः ८१८ एवं ८८८ पाण्डुलिपियों का विवरण दिया गया है जिसमें व्रत, इतिहास, पुराण, उपाख्यान, माहात्म्य, गीता एवं सहस्रनाम की पाण्डुलिपियों का विवरण है। भाग-६ तक के प्रधान सम्पादक डॉ. जी. मरूलसिद्धैया थे । इसके अनन्तर विद्वान डॉ. एच्. पी. मल्लदेवरू ने इस कार्य को प्रधान सम्पादक के रूप में आगे बढ़ाया । जिसके कारण १९८२ में भाग-८ के अन्तर्गत ८५८ पाण्डुलिपियों का विवरण प्रकाशित हुआ । डो. मल्लदेवरू ने इस कार्य में इतनी रुचि ली कि प्रत्येक वर्ष यहाँ की सूचियाँ प्रकाश में आने लगी। १९८३ में भाग-९ के अन्तर्गत ४६६; १९८४ में भाग-७ के अन्तर्गत ६४५; १९८४ में ही भाग-१० के अन्तर्गत ८८८; १९८५ में भाग-११ के अन्तर्गत १२१८; १९८६ में भाग
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