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Vol. XXXVI, 2013
स्वातन्त्र्योत्तर भारत में पाण्डुलिपियों का संग्रह एवं सूचीकरण
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उपलब्धि सिद्ध कर दी जो यहाँ आकार पाण्डुलिपियों से सम्बन्धित किसी भी कार्य को पूर्ण कर सके। केन्द्र ने कलाकोश विभाग के माध्यम से पाण्डुलिपियों में उपलब्ध प्राचीन लिपियों जैसे शारदा, नेवारी, ग्रन्थ, टाकरी आदि के अध्ययन की योजना इस तरह से तैयार की कि मात्र दस कार्यशालाओं के माध्यम से नवयुवक विद्वानों का एक ऐसा समूह तैयार हो गया जो देश में ही नहीं विदेशों में जाकर हस्तलेखों के लिप्यन्तरण कार्य में सहायक हुये तथा सम्प्रति सुयोग्य सम्पादक के रूप में जाने जाते हैं । इस कार्य योजना के सम्पादन के लिये पण्डित सातकड़ि मुखोपाध्याय जी का योगदान सराहनीय है। इसी क्रम में सम्पादन के सिद्धान्तों के शिक्षण के साथ-साथ पाण्डुलिपियों के आधार पर ग्रन्थों का सम्पादन एवं प्रकाशन किया गया है जो पाण्डुलिपि के क्षेत्र में एक बहुत बड़ी उपलब्धि है। सबसे प्रसन्नता की बात यह है कि पाण्डुलिपि के क्षेत्र में देश के सर्वाधिक ख्याति प्राप्त विद्वानों ने इस कार्य में सहयोग ही नहीं दिया वरन् स्वयं ग्रन्थों को सम्पादित करके राष्ट्रीय महत्त्व का कार्य किया है। यहाँ स्व. प्रो. सी. जी. काशीकर, स्व. प्रो. प्रेमलता शर्मा, स्व. प्रो. महेश्वर नियोग, स्व. प्रो. जी. एच. तारलेकर एवं स्व. प्रो. एच. जी. रानाडे का स्मरण सहज ही हो उठता है । सम्प्रति प्रो. आर्. सत्यनारायण, प्रो. टी. ऐन. धर्माधिकारी, प्रो. पी. पी. आप्टे, प्रो. समीरनचन्द्र चक्रवर्ती, प्रो. पी. एस. फिलियोजा, प्रो. गयाचरण त्रिपाठी, प्रो. पी. डी. नवाठे एवं प्रो. राधेश्याम शास्त्री जैसे श्रेष्ठ आचार्य सम्पादन कार्य में लगे हुये हैं । केन्द्र की कलामूलशास्त्र ग्रन्थमाला तथा कलातत्त्वकोश भारतीय विद्या के क्षेत्र में एक अभूतपूर्व ज्ञान की विरासत के रूप में स्मरण किये जायेंगे । वस्तुत: यह राष्ट्र के लिये १९५० के बाद एक विशिष्ट घटना है। विशेषरूप से मौखिक परम्परा की अद्वितीय विरासत ऋग्वेद की आश्वलायन संहिता (सम्पादक-प्रो. वज्रबिहारी चौबे) तथा शांखायन रुद्राध्याय (सम्पादक एवं अनुवादक - डॉ. प्रकाश पाण्डेय) का प्रकाशन अलवर संग्रहालय से प्राप्त पाण्डुलिपियों के आधार पर केन्द्र द्वारा पहली बार किया गया है। इस तरह से इन्दिरा गांधी राष्ट्रीय कला केन्द्र पाण्डुलिपियों के संरक्षण एवं संवर्धन के साथ-साथ बौद्धिक संरक्षण के लिये कृतसंकल्प है।
इस क्षेत्र में इस शती की एक महत्त्वपूर्ण उपलब्धि के रूप में २००३ में राष्ट्रीय पाण्डुलिपि मिशन की स्थापना को भी देखा जाना चाहिए । प्रारम्भिक वर्षों में इन्दिरा गाँधी राष्ट्रीय कला केन्द्र की पाण्डुलिपियों के सूक्ष्मचित्रण एवं उपलब्ध सूचियों के आधार पर मिशन ने साढ़े सात लाख ग्रन्थों की सूची के लिए डेटा बेस तैयार किया। मिशन ने केन्द्र की डेटाशीट पर उपलब्ध सूचनाओं को प्रामाणिक मानकर अपना डेटा बैंक प्रारम्भ किया । पाण्डुलिपि के कुछ अंश साक्षात् उपलब्ध होने पर सूचनाएँ अधिक प्रामाणिक हो पाती हैं । परोक्ष सूचनाओं का सत्यापन सूची को प्रामाणिक बनाता है।
पुनः २००७ में एक ऐसे विनब्ध वातावरण में भारत सरकार ने राष्ट्रीय पाण्डुलिपि मिशन का दायित्व इन्दिरा गाँधी राष्ट्रीय कला केन्द्र को सौंपा जब उसकी समय सीमा समाप्त हो चुकी थी। केन्द्र
ने मख्य चनौती थी - इसकी सभी योजनाओं की उपादेयंता को परिणाम में परिवर्तित करना और यह कार्य इन्दिरा गान्धी राष्ट्रीय कला केन्द्र ने अत्यन्त तीव्रता के साथ आगे बढ़ाया । मूलभूत ढाँचे को . न परिवर्तित करते हुये केन्द्र ने पाण्डुलिपियों के डेटा बैंक को तीस लाख तक पहुँचाया तथा बौद्धिक
के सामा
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