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132 'वर्षाबहन एच. पटेल
SAMBODHI में ही एक अन्य स्थान पर उनका क्रम परिवर्तित कर दिया गया - गौरी, काली, उमा, भद्रा, कान्ति, सरस्वती, मंगला, वैष्णवी के स्थान पर विजया फिर क्रम से लक्ष्मी, शिवा, नारायणी है ।
. स्कन्धपुराण में एक देवता का सम्बन्ध एक देवी से बताते हुए कहा है कि ब्रह्मा सरस्वती के साथ, श्री विष्णु के साथ तथा इन्द्र देव इन्द्राणी के साथ जो कि समस्त जगत् के नियंता नियामक द्रष्टा है।
सरस्वती की देवी रूप में विवेचना करते हुए कहा है कि स्वरण शीतलता के कारण स्वर कहलाता है जो गान में प्रशस्त है अति शब्द प्राप्ति और दान का वाचक है। अतः स्वरत्व प्रदान करनेवाली देवी को सरस्वती कहते है।
इस प्रकार सरस्वती का पुराणों में जो स्वरूप विवेचन है। सरस्वती का वह स्वरूपवेदो से चला आ रहा है और आधुनिककाल तक सरस्वती का जो रूप लोगों को मान्य है।
वह देवी रूप सभी के लिए उपास्या एवं वन्दनीय है। पुराणों में सरस्वती नदी के रूप में
मानव जीवन में नदियों एवं पर्वतों का सदैव से महत्त्वपूर्ण स्थान रहा है। इन्होंने मनुष्य जाति को अनेक प्रकार से प्रभावित किया है। सामाजिक, भौगोलिक, धार्मिक, ऐतिहासिक आदि अनेक दृष्टिकोणों से इनकी महता है नदियां हमारी न केवल भौतिक आकांक्षाओं की पूरक है किन्तु उनसे एक दिव्य संदेशा मिलता है और वे दिव्य प्रेरणा का स्त्रोत समझी जाती है सवात्मदर्शी ऋषियों ने उनमें जीवन का साक्षात्कार किया है। वैदिक साहित्य के अध्ययन से हमें यह ज्ञात होता है कि आदि ऋषि आधन्त स्थूलप्रकृतिवादी नहीं थे किन्तु प्रकृति के प्रति उनका अपना एक विशेष प्रकार का मनोविज्ञानिक दृष्टिकोण था। इस दृष्टिकोण के आधार पर उन्होंने प्रकृति के भिन्न-भिन्न पदार्थों को भिन्न भिन्न प्रतीको का रूप दे रखा था । फलतः उनसे बाह्य एवं आन्तरिक प्रभाव की अपेक्षा रही । स्थूल प्रकृति के भीतर मस्तिष्क एवं आत्मा की सता है। वैज्ञानिक युग के अन्वेषणों के आधार पर सिद्ध किया जा चुका है कि पेड़-पोंधों में जीवन एवं अनुभूति भावना है । जब जल अथवा जलाशयों की उपासना सन्तति अथवा किसी वरदान का आशा से की जाती है तब अप्रत्यक्ष रूप से हम उनमें जीवत्व स्वीकार कर ही लेते हैं । जीवत्व की यह कल्पना और साकार हो उठती है जब हम आदि काल से ही नदी विशेष को तन्नामात्मक देवी विशेष से प्रतिष्ठित करते हैं।
वामनपुराण में सरस्वती को कामगा कहा गया है। वह मेघों में जल - सर्जन करती है तथा सभी जल सरस्वती नाम से वर्णित है।
सरस्वती नदी का जल पवित्र है जो कि गंगा, यमुना, गोदावरी, सरस्वती, नर्मदा, सिन्धु, कावेरी आदि नदियों का पवित्र जल स्नान योग्य है।
मत्स्यपुराण के अनुसार सरस्वती का आदि स्त्रोत सरोवर (सपाणां तत्सरः) है । इस सरोवर से सरस्वती तथा ज्योतिष्मती दो नदियों का आविभाव होता है। ये दोनों नदियां इससे निकल कर क्रमशः पूर्वी एवं पश्चिमी समुद्रों में गिरती है।
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