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138 सागरमल जैन
SAMBODHI २ वसुदेव हिण्डी संघदासगणि (श्वे) प्राकृत ई. सन् ६०८ ३ पद्म पुराण
रविषेण (दि.) संस्कृत ई. सन् ६७८ ४ पउमचरिउ
स्वम्भू (दि.) अपभ्रंश प्रायः ईसा की ८वीं शती (मध्य) ५ चउपन्न महापुरिसचरियं । शीलाङ्क (श्वे.)
प्राकृत
ई. सन् ८६८ ६ उत्तरपुराण
गुणभद्र (दि.) संस्कृत ई. सन् प्राय: ८वीं शती ७ बृहत्कथाकोष
हरिषेण (दि.) संस्कृत ई. सन् ८३१-८३२ ८ महापुराण
पुष्पदंत (दि.) अपभ्रंश ई. सन् ८६५ ९ कहावली - भद्रेश्वर (श्वे) प्राकृत प्रायः ई. सन् ११वीं शती.. १०. त्रिषष्टीशलाकापुरुषचरित हेमचन्द्र (श्वे) संस्कृत प्राय: ई. सन् १२वीं शती ११. योगशास्त्र स्वोपज्ञ वृति हेमचन्द्र (श्वे) संस्कृत प्रायः ई. सन् १२वीं शती १२. शत्रुञ्जयमहात्म्य धनेश्वरसूरि (श्वे) संस्कृत प्रायः ई. सन् १४वीं शती १३. पुण्यचन्द्रोदय पुराण कृष्णदास (दि.) संस्कृत ई. सन् १५२८ १४. रामचरित
देवविजयगणि (श्वे) संस्कृत ई. सन् १५६६ १५. लघुत्रिषष्टिशलाकापुरुषचरित मेघविजय (श्वे) संस्कृत ई. सन् की १७ वीं शती जैनों में रामकथा की दो प्रमुख धाराएँ
वैसे तो अवान्तर कथानकों की अपेक्षा जैन परम्परा में भी रामकथा के विविध रूप मिलते हैं। जैन परम्परा में भी लेखकों ने प्रायः अपनी अपनी दृष्टि से रामकथानक ८वीं शताब्दि से देखी जाती है - १. विमलसूरि की रामकथा धारा और २. गुणभद्र की रामकथा की धारा । सम्प्रदायों की अपेक्षा-अचल यापनीय एवं श्वेताम्बर विमसलूरि की रामकथा की धारा का अनुसरण किया । श्वेताम्बर परम्परा में संघादासगणि एवं यापनीय में रविशेष, स्वयम्भू एवं हरिषेण भी मुख्यतः विमलसूरि के 'पउमचरियं' का ही अनुसरण करते है, फिर भी संघदासगणि के कथानकों में कहीं-कहीं विमलसूरि से मतभेद भी देखा जाता है। रामकथा सम्बन्धी प्राकृत ग्रन्थों में शीलांक चउपन्नमहापुरिसचरियं में, हरिभद्र धूर्ताव्याख्यान में
और भद्रेश्वर कहावली में, संस्कृत भाषा में रविषेण पद्मपुराण में दिगम्बर अमितगति धर्मपरीक्षा में, हेमचन्द्र योगशास्त्र की स्वोपज्ञवृत्ति में तथा त्रिषष्टिशलाकापुरुषचरित्र में, धनेश्वर शत्रुञ्जयमहात्म्य में, देवविजयगणि 'रामचरित' (अप्रकाशित) और मेघविजयगणि लघुत्रिषष्टिशलाकापुरुषचरित्र (अप्रकाशित) में प्रायः विमलसूरि का ही अनुसरण करते हैं । अपभ्रंश में स्वयम्भू 'पउमचरिउ' में भी विमलसूरि का ही अनुसरण करते हैं। यहाँ यह ज्ञातव्य है कि रविषेण का 'पद्मपुराण' (संस्कृत) और स्वयम्भू का पउमचरिउ (अपभ्रंश)
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