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सागरमल जैन
SAMBODHI
अर्थात् दुसमा नामक आरे के पाँच सौ तीस वर्ष और वीर का निर्वाण होने पर यह चरित्र लिखा गया । यदि हम लेखक के इस कथन को प्रामाणिक माने तो इस ग्रन्थ की रचना विक्रम संवत् ६० के लगभग मानना होगी। महावीर का निर्वाण दुसमा नामक आरे के प्रारम्भ होने लगभग ३ वर्ष और ८ माह पूर्व हो चुका था अतः इसमें चार वर्ष और जोड़ना होगे। मतान्तर से महावीर का निवार्ण विक्रम संवत् के ४१० वर्ष पूर्व भी माना जाता है, इस सम्बन्ध में मैने अपने लेख "Date of Mahavira's Nirvana" अर्थात् विक्रम संवत् की दूसरी शताब्दी के पूर्वार्ध में हुई होगी । मेरी दृष्टि में पउमचरियं का यही रचना काल युक्ति-संगत सिद्ध होता है। क्योंकि ऐसा मानने के सम्बन्ध में जो तर्क दिये गये है वे भी निरस्त हो जाते है। हरमन जेकोबी. स्वयं इसकी पर्व तिथि २री या ३री शती मानते हैं, उनके मत से यह मत अधिक दूर भी नहीं है। दूसरे विक्रम का द्वितीय शताब्दी पूर्व ही शकों का आगमन हो चुका था अतः इसमे प्रयुक्त लग्नों के ग्रीक नाम तथा 'दीनार', यवन, शक आदि का सूचक है जो ईसा पूर्व भारत में आ चुके थे। शकों का आगमन भी विक्रम संवत् के पूर्व हो चुका था, कालकाचार्य द्वारा शकों के भारत आने का उल्लेख विक्रप पूर्व का है। दीनार शब्द भी शकों के आगमन के साथ ही आ गया होगा । साथ ही नाईल कुल या शाखा भी इस काल में अस्तित्व में आ चुकी थी । इसे मैनें पउमचरियं की परम्परा में सिद्ध किया है । अतः पउमचरियं को विक्रम की द्वितीय शती के पूर्वार्ध में रचित मानने में कोई बाधा नहीं रहती है। विमलसूरि और उनके पउमचरिय का सम्प्रदाय
यहाँ क्या विमलसूरि का पउमचरियं यापनीय है ?
इस प्रश्न का उत्तर भी अपेक्षित है। विमलसूरि और उनके ग्रन्थ पउमचरियं के सम्प्रदाय सम्बन्धी प्रश्न को लेकर विद्वानों में मतभेद पाया जाता है। जहाँ श्वेताम्बर' और विदेशी विद्वान् पउमचरियं में उपलब्ध अन्तः साक्ष्यों के आधार पर उसे श्वेताम्बर परम्परा का बताते हैं, वही पउमचरियं के श्वेताम्बर परम्परा के विरोध में जानेवाले कुछ तथ्यों को उभार कर कुछ दिगम्बर विद्वान् उसे दिगम्बर या यापनीय सिद्ध करने का प्रयत्न करते हैं । वास्तविकता यह है कि विमलसूरि के पउमचरियं में सम्प्रदायगत मान्यताओं की दृष्टि से यद्यपि कुछ तथ्य दिगम्बर परम्परा के पक्ष में जाते हैं, किन्तु अधिकांश तथ्य श्वेताम्बर परम्परा के पक्ष में ही जाते हैं । जहाँ हमें सर्वप्रथम इन तथ्यों की समीक्षा कर लेनी होगी। प्रो. बी. एम. कुलकर्णी ने जिन तथ्यों का संकेत प्राकृत टेकस्ट सोसायटी से प्रकाशित 'पउमचरियं' की भूमिका में किया है, उन्हीं के आधार पर यहाँ हम यह चर्चा प्रस्तुत करने जा रहे हैं । पउमचरिय की दिगम्बर परम्परा के निकटता सम्बन्धी कुछ तर्क और उनके उत्तर (१) कुछ दिगम्बर विद्वानों का कथन है कि श्वेताम्बर सम्प्रदाय में सामान्यतया किसी ग्रन्थ का प्रारम्भ
'जम्बू स्वामी के पूछने पर सुधर्मा स्वामी ने कहा', - इस प्रकार से होता है, आगमों के साथसाथ कथा ग्रन्थों में भी यह पद्धति मिलती है, इसका उदाहरण संघदासगणि की वसुदेव हिण्डी है। किन्तु वसुदेवहिण्डी में जम्बू ने प्रभव को कहा – ऐसी पद्धति उपलब्ध होती है। जहाँ तक
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