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समाज और संस्कृति
रहा है यह गलत है । तू अपने मन में से इस भ्रम को निकाल फेंक, कि संसार की किसी नदी में, अथवा संसार के किसी पर्वत में तेरी श्रेष्ठता और तेरी पवित्रता का वास है । तेरी श्रेष्ठता और तेरी पवित्रता कहीं बाहर नहीं है, वह तो तेरे अन्दर ही है । तेरा यह सोचना भी एकदम गलत है, कि तेरे भाग्य का निर्माण और तेरे भविष्य का निर्माण अथवा तेरे सुनहरे स्वप्नों का निर्माण, आकाश में रहने वाला कोई देव करता है । तुझे यह विश्वास करना चाहिए, कि तेरे सुनहरे भविष्य के द्वार खोलने की चाबी, तेरे अपने हाथ में है, किसी अन्य हाथ में नहीं । जो व्यक्ति अपने भाग्य के द्वार खोलने की चाबी अपने हाथ में न रखकर, किसी दूसरे को सौंप देता है, दुनियाँ में उससे बढ़कर अन्य कोई अभागा नहीं हो सकता । निश्चय ही मनुष्य से ज्येष्ठ और श्रेष्ठ अन्य कोई नहीं है ।
क्या इस श्रेष्ठता का अर्थ यह है, कि इंसान खूब खाने-पीने में मस्त रहे ? क्या इस खाने-पीने के लिए ही मनुष्य जीवन है ? क्या भोग-विलास में डूबे रहना ही उसके जीवन का लक्ष्य है ? इन्सान को यह सोचना पड़ेगा, कि उसकी खुद की जिन्दगी कैसी है और उसके पड़ोस में रहने वाले इन्सानों की जिन्दगी कैसे गुजर रही है ? यह संसार बड़ा विचित्र है । समता नहीं, विषमता ही सब ओर परिलक्षित है । हम सब देखते हैं, कि कहीं पर आँसुओं की नदियाँ बह रही हैं, तो कहीं पर हँसियों के फब्बारे छूट रहे हैं । क्या मनुष्य इन सबकी उपेक्षा करके अपने जीवन में प्रगति कर सकता है ? क्या वह अपनी जिन्दगी की राह पर आगे बढ़ सकता है ? मानव की मानवता इसी में है, कि वह अपने जीवन की प्रत्येक क्रिया पर विचार करे, कि मैं यह क्या कर रहा हूँ और मेरे ऐसा करने में उद्देश्य क्या है ? मेरी जिन्दगी की मुस्कान में, अन्दर में किसी गरीब के आँसू तो नहीं छुपे हुए हैं । मेरे जीवन के सुख में किसी गरीब का खून और पसीना तो नहीं बह रहा है । याद रख, तेरे जीवन का अन्याय, तेरे जीवन का अत्याचार, तेरे जीवन का पापाचार और तेरे जीवन का मिथ्याचार, तेरे जीवन की शक्ति को गला देगा । स्वयं तेरा जीवन ही नहीं, तेरे परिवार, तेरे समाज और तेरे राष्ट्र की जीवन-शक्ति को गलाने की क्षमता भी उसके अन्दर है । प्रत्येक मनुष्य को अपने हृदय की गहराई में उतर कर यह सोचना चाहिए, कि मेरे भविष्य का निर्माण, स्वयं मेरे अपने पुरुषार्थ से हो रहा है, अथवा दूसरों के कन्धों
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