Book Title: Rushimandal Stotra
Author(s): Chandanmal Nagori
Publisher: Sadgun Prasarak Mitra Mandal

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Page 21
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ऋषि मंडल मंत्र के अधिष्टायक देव निज के भक्तों को कष्ट दूर करने के हेतु किस प्रकार सहायक हुवे हैं, और होते हैं एसे वृत्तान्त को भी जानने की आवश्यक्ता है। देव-देवी की अपार शक्ति और निजकी क्षुद्रता को पूरी तरह लक्ष में रखना चाहिये। आराधन करने वाले पुरुष का कर्तव्य है कि वह मंत्राधिष्ठिह देव-देवी की अपार दया व प्रेम से द्रवित होकर उस के पुनित स्वरूप में तन्मय हो जाने की चेष्टा करे। इस तरह की तन्मयता से सिद्धी प्राप्त करने में सहायता मिलती है। यह बात तो भलि भांति समझ में आ गई होगी कि मंत्र की रचना मर्यादित अंक में मर्यादित अक्षर में विशिष्ट पद्धति अनुसार मंत्रशास्त्र शक्ति के विशारद अनुभवी महात्माओं द्वारा रचित होती हैं। जिसका हेतु बहुत गहन होता है, और मंत्र शास्त्र के नियमानुसार अक्षरों का मीलान संयुक्ताक्षर, द्वाक्षरी, त्रितियाक्षरी, चतुराक्षरी, पञ्चाक्षरी, षष्ठाक्षरी, सप्ताक्षरी, अष्टाक्षरी, और नवाक्षरी तक किया हुवा होता है। इसी लिये एसे महान मंत्रों का जाप वारम्वार करने से सिद्ध हो जाता है । जिसका फल अमोघ अर्थात् महान लाभदाई बताया है, अतः एसे महान मंत्र का विशेष पद्धति सहित जप-ध्यान किया जाय तो विशेष फलदाई होता है। जिन लोगोंको मंत्र पर श्रद्धा नही हैं वह गलती पर हैं, For Private and Personal Use Only

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