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उत्तर क्रिया करनेका विधान
॥ (१३) अवगुंठन ॥ ॐ आँ क्रीँ ह्रीं श्री शान्तिनाथाय परेषां मिथ्याद्रष्यां भवंतु स्वाहा ॥
तर्जनी उङ्गली उंची करके अवगुंठन द्वारा मंत्र बोलना चाहिए॥
॥ (१४) छोटीका ॥
॥ विघ्न त्रासनार्थ ॥अआ पूर्वे इ ईदक्षिणे, उ ऊ पश्चिमे, ए ऐ उत्तरे, ओ औ आकाशे, अं अःपाताले अंगुष्ठा तर्जनी मुच्छाप्य ।। इति छोटिका
॥ (१५) अमृतिकरण ॥ अमृतिकरण धेनुमुद्रा द्वारा करना चाहिए।
॥ (१६) पूजनं ॥ ॐ आँ क्रॉ ह्रीं श्रीं भगवतः शान्तिनाथ गंधादि गृहन्तर नमः॥
इस मंत्र से प्राजलीमुद्राद्वारा पूजा करना चाहिए। बाद में अन्य देवादिकों की पुजा का मंत्र बोलना ।
ॐ आँ क्राँ ही श्री भगवतः शान्तिनाथाय जिनपदभक्ता
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