Book Title: Rushimandal Stotra
Author(s): Chandanmal Nagori
Publisher: Sadgun Prasarak Mitra Mandal

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Page 106
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir उत्तर क्रिया विधि ८५ दिग्पाल नवग्रह क्षेत्रदेवता आदिकी स्थापना करने के लिये जगह तजवीज कर लेवे । दूसरी तरफ चौबीस जिन भगवान की स्थापना, षोडस देवी स्थापना, अथवा चौबीस जिन भगवानकी अधिष्टायक देवियां, या यक्षकी स्थापना कर लेवे । एक जगह सिद्धचक्रजी की स्थापना करले । चारों कोनोमें चार चंवरी पांच पांच मिट्टी के बरतनकी जिसमे नीचे बडा बरतन उसके उपर छोटा बरतन अनुक्रमसे रख उपर बीजोरा रखे या श्रीफल रखकर चुंदड-अथवा लाल कपडा एक हाथ सवा हाथका लंबा चोडा उसके उपर आच्छादित करे लच्छेसे (नाडाछडो) बांधकर उपर चंदन कुम्कुम पुष्प अक्षत डाल देवे। जब इस तरहकी तैयारी हो जाय तो स्थापना करते समय जिनदेव देवियोंकी मूर्ति-छबो-चित्र न हो उनकी स्थापना एक बाजोट पर दश दिग्पाल, एक पर नवग्रह आदि अनुक्रमसे करे और कुम्कुमका साथिया कर सुपारी चांवल या श्रीफल प्रत्येक स्थापनाके लिये रखे । कुम्भस्थापना पहले करके उसके पास घी का दीपक अखंड ज्योतसे रखना चाहिए। जब इस तरहकी तैयारी हो जाय तो हवनकी सामग्रीके लिये सूखा मेवा बादाम पिशता दाख चिरोंजी व शक्कर धीरत और थोडा कपूर मिलाकर एक तांबेके नये बरतनमे रख लेवे और आसन पर सुखासन लगाकर शांति तुष्टि पुष्टि के लिये पूर्वकी तरफ मुख रखकर बैठे और साथमें किसी पुरुषको For Private and Personal Use Only

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