________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
उत्तर क्रिया करनेका विधान
संवत् अमुकमास तिथिवारेऽहं अमुक गुरुशिष्योहं अमुकसिद्धये अमुकजपं होमं च प्रारंभे-वा करिष्ये सच श्री जिनेन्द्रचन्द्र वा मंत्राधिष्ठिदेव प्रसादेन सफलोभवः ॥ ___ अत्र हस्तक्रियास्ति सा श्रीगुरुमुखाद्यसेया इति सङ्कल्प। ततः। ___ ॐ नमोऋषिभाय इतिपदमुच्चरन स कर्पूरमुगंधपुष्पै पूमा कार्या देवता व सुर पुजनं । ___इत्यादि पटेन चतुर्विशंति जिनाः विविक्षित देव देषश्चक्रमेण स्थापनाकार्य पट्टाद्वौ आहाहनं मुद्रद्रियावाहनं धेनुमुद्रया स्थापना ॥
इतनी क्रिया के बाद सङ्कल्प इस तरह करना ।
ॐ भुरिलोके जम्बूद्वीपे भरतखण्डे दक्षिणार्द्धभरते मध्यखण्डे अमुकदेशे अमुकनगरे अमुकगृहे अमुकप्रसादे अमुक वर्षे अमुकमासे अमुकपक्षे अमुकवारे नक्षत्रे एवं पञ्चाङ्ग शुद्धौ ममात्मा पुत्र मित्र कलत्र सुहृदय बन्धुवर्ग स्वजनशरीरे रोगदोग क्लेश कष्ट पीडा निवार्थे शत्रुक्षयार्थ ग्रहपीडानिवार्थ क्षेमार्य श्रीमाप्तार्थ मनोकामनासिद्धार्थ श्रीशांतिनाथ १०८ अभिषेक श्रीशांतिकर स्तवन पूजा विधि १०८ जप करिष्यामि । दशांश होमं करिष्ये सव्व श्रीमंत्राधिष्टायकदेव प्रसादेन सफलो मव ।।
. इस तरह सङ्कल्प करने के बाद संपोषट सदा करके मंत्र द्वारा आहाइन करे। संबोषट मुद्रा इस तरह करते हैं कि मष्टि
For Private and Personal Use Only