________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
४८
ऋषि मंडल स्तोत्र
ध्यानी योगी महापुरुष इस महातत्त्व-मंत्र का स्थिर चित्त से ध्यान करे तो फलस्वरुप आनन्द और सम्पत्ति की भूमिरुप मोक्षलक्ष्मी को प्राप्त कर लेता है।
रेफ बिन्दु और कला रहित शुभाक्षर "ह" का ध्यान करते हैं, उन पुरुषों को ध्यान करते करते यही अक्षर अनक्षरता को प्राप्त हो जाता है, और फिर बोलने में नही आता सिर्फ लय लग जाती है और इसका स्वरूप व्याप्त हो जाता हो इस प्रकार से चिंतवन करे, और अभ्यास बढाता हुवा चन्द्रमा की कला जैसा सूक्ष्म आकारवाला, व सूर्य की तरह प्रकाशमान, अनाहत नाम के देवको स्फुरायमान होता हो इस तरह का ध्यान लगावे।
वाद में अनुक्रम से केश के अग्रभाग जैसा सूक्ष्म चिन्तवन करना और क्षणवार जगतको अव्यक्त ज्योतिवाला चिन्तवन कर के लक्ष से चित्त को हटाया जाय तो अलक्ष में चित्त को स्थिर करते हुवे अनुक्रम से अक्षय इंद्रियों से अगोचर जैसी अनुपम ज्योति प्रगट होती है । इस प्रकार लक्ष के आलम्बन से अलक्ष भाव प्रकाशित हुवा हो तो ध्यान करने वाले को सिद्धि प्राप्त हो गई समझना चाहिये।
उपरोक्त कथनानुसार स्वर व्यंजन अक्षरों की उपयोगिता पाठकों के समझ में आ गई होगी जिस में भी आद्य व अंताक्षरका महात्म्य तो एक अजीब प्रकारका बताया है और
For Private and Personal Use Only