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ऋषिमंडल मंत्रभेद
मंत्रके भेद भी कई तरहके बताये हैं, इसी लिए एक ही मंत्र, शान्ति, तुष्टि, पुष्टि, क्रूर, मारण, उच्चाटन, और वशीकरण का काम देता है । मंत्र वेत्ताओंने एसी विधिका अन्यत्र बयान कर मंत्र जनता के सामने रख दिये है । एसे मंत्रोका ध्यान स्मरण किया जाता है तथापि सिद्धि प्राप्त नही होती, और सिद्धि न होनेसे मन हट जाता है, और मन हटना स्वभाविक बात है, क्यों कि साधक पुरुष कष्ट के समयमें परिश्रम, संताप, तप आदि सहन कर आराधना करते हैं, और एसे विपत्ति व कष्ट के समयमें मंत्राराधन फलीभूत न हों तो श्रद्धा हट जाना स्वभाविक बात है । मनुष्य को इतनी धैर्यता कहां होती है कि वह सिद्धि प्राप्त न होने पर भी धैर्यता से बैठ रहे, और स्मरण ध्यान करता जाय । इस विषय में हमें तो यही प्रतीत होता है कि मंत्रभेद की जानकारी जैसी कि चाहिए नही होती और आराधना शुरु कर देते हैं इस लिये मंत्र सिद्धि नही होती अतः पहले मंत्रभेद को जान लेना चाहिए । जब मंत्रभेद समझमें आ जाय तो साधनका मार्ग बहुत सरल व सुगम हो जाता है ।
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