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ऋषि मंडल
भावार्थ -- पहिला अर्हत पद शिखाकी रक्षा करो, दूसरा सिद्धपद मस्तक की रक्षा करो, तीसरा आचार्यपद दोनो नेत्रोंकी रक्षा करो, और चौथा उपाध्याय पद नासिकाकी रक्षा करो ।
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पंचमं तु मुखं रक्षेत्, - षष्टं रक्षेच्च घंटिकां ॥ नाभ्यंतं सप्तमं रक्षेद्रक्षेत् पादांतमष्टमं 11 2 11
भावार्थ- पांचवां साधूपद मुँहकी रक्षा करो, छठा ज्ञानपद कण्टकी रक्षा करो, सातवां सम्यग् दर्शनपद नाभिकी रक्षा करो, और आठवां चारित्रपद चरणकी रक्षा करो।
पूर्वप्रणवतः सांत सरेफो लब्धिपंचखान् ॥ सप्ताष्टदशसूर्यकान् श्रितो बिन्दुस्वरान् पृथक् ॥ ९ ॥
भावार्थ - प्रथम प्रणव अक्षर ॐ को लिख कर बादमे सकारान्त- अन्त के अक्षर "ह" को रेफ सहित लिखना और उसके उपर स्वराक्षर की मात्रा लगावे, जैसे आ. की मात्रा, ई. की मात्रा, उ. की मात्रा ऊ. की मात्रा, ए. की मात्रा, ऐ. की मात्रा, औ. की मात्रा को, अनुस्वार सहित लिखे और अ की मात्रा भी लिखे जिस से, हूँ. ही. हूँ. हूँ. हूँ. हैं . हो. हूँ: बन जाता है।
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