Book Title: Rushimandal Stotra
Author(s): Chandanmal Nagori
Publisher: Sadgun Prasarak Mitra Mandal

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Page 49
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org .३० ऋषि - मंडल भावार्थ —– युद्ध में राजदरबारमें अग्निके भयमें जलके उपद्रवमें किलेमें हाथी व सिंह के भयमें स्मशान भूमि निर्जन वनखंड स्थानमे भय प्राप्त हुवा हो वहां इस स्तोत्रमंत्रके - स्मरण मात्र से मनुष्यकी रक्षा होती है । Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir राज्यभ्रष्टा निजं राज्यं, - पदभ्रष्टा निजंपदं ॥ लक्ष्मी भ्रष्टा निजां लक्ष्मी, - प्राप्नुवन्ति न संशयः ५१ भावार्थ - राजपद से अलग होनेवालेको निजका राज-पद, पदवीसे भ्रष्ट होनेवालेको निजकी पदवी, और जिनकी लक्ष्मी चली गई होय ऊन पुरुषोंको निजकी लक्ष्मी प्राप्त होती है इसमें किसी प्रकारका संदेह नही है । भार्यार्थी लभते भार्या, पुत्रार्थी लभते सुतं, वित्तार्थी लभते वित्तं, नरः स्मरणमात्रतः ॥५२॥ भावार्थ — स्त्रीके इच्छुकको स्त्री पुत्रकी लालसा वालेको पुत्र, धनके अर्थीको धनकी प्राप्ती इस स्तोत्रके स्मरण मात्रसे हो जाती है । स्वर्णे रुपये पट्टे कांस्ये, - लिखित्वा यस्तु पुज्यते ॥ तस्यैवाष्टमहासिद्धि, गृहे वसति शाश्वती ॥५३॥ भावार्थ — इस ऋषिमंडल स्तोत्रके यंत्रको सोनेके, चांदीके तांबेके अथवा कांसीके पतडे पर लिख कर पुजन For Private and Personal Use Only

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