Book Title: Rushimandal Stotra
Author(s): Chandanmal Nagori
Publisher: Sadgun Prasarak Mitra Mandal

View full book text
Previous | Next

Page 51
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org ३२ ऋषि - मंडल एतद्गोप्यं महास्तोत्रं, न देयं यस्य कस्यचित् ॥ मिथ्यात्ववासिने दत्ते, बालहत्या पदे पदे ॥५७॥ Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir भावार्थ - इस स्तोत्रको गुप्त रखना चाहिए, हर एक मनुष्यको नही देवे ( योग्यता देख कर देना) मिथ्या दृष्टिबालेको देनेसे पद पद पर बालहत्या के तुल्य पाप लगता है । ( अर्थात् अयोग्य पुरुष इस स्तोत्र-मंत्रकी सिद्धि प्राप्त करे तो अनर्थ आदिका भय रहता है ।) आचाम्लादितपः कृत्वा, पूजयित्वा जिनावलीं ॥ अष्टसाहस्रिको जापः कार्यस्तत्सिद्धिहेतवे ॥ ५८॥ भावार्य - आयंबिल की तपस्या करके जिनेन्द्र भगवानकी अष्ट द्रव्यसे पूजा करे और इस मंत्रका आठ हजार जाप करे तो कार्य सिद्ध हो जाता है । शतमष्टोतरं प्रात, - पठन्ति दिनेदिने । तेषां न व्याधयो देहे, - प्रभवन्ति न चापदः ॥ ५९ ॥ भावार्थ - जो मनुष्य इस स्तोत्रके मंत्रकी एक माला अर्थात् एकसो आठ जाप नित्य- प्रति प्रातःकालमें करते हैं उनको किसीभी तरहकी व्याधि उत्पन्न नही होती और सारी आपत्तियां टल जाती हैं । अष्टमासावधिं यावत्, - प्रातः प्रातस्तु यः पठेत् ॥ स्तोत्रमेतत्महांस्तेजो, - जिनबिंबं स पश्यति ॥ ६०॥ For Private and Personal Use Only

Loading...

Page Navigation
1 ... 49 50 51 52 53 54 55 56 57 58 59 60 61 62 63 64 65 66 67 68 69 70 71 72 73 74 75 76 77 78 79 80 81 82 83 84 85 86 87 88 89 90 91 92 93 94 95 96 97 98 99 100 101 102 103 104 105 106 107 108 109 110 111