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ऋषि मंडल यंत्रमें पदस्थ
ध्येय स्वरूप
ऋषिमंडल यंत्र में अक्षरों की योजना और स्वर व्यंजन के साथ संयुक्ताक्षर के मंत्र बीजाक्षरका मिश्रण देख आश्चर्य करने की आवश्यकता नही है । प्राचीन ग्रन्थो में जो बात प्रतिपादित होती है वह विना कारण के नही होती, साधारण बुद्धिवाला मनुष्य ज्यादे अनुभवी न होने से उसे एसा खयाल हो जाता है कि, स्वर व्यंजन के अक्षरों की क्या पूजा बताई ? लेकिन इसके प्राचीन प्रमाण बहुत से सम्पादन होते है, उनमें से एक उदाहरण योगशास्त्रका जिसमें श्रीमान् हेमचन्द्राचार्यजी महाराजने पदस्थ ध्येय का स्वरुप बताते कथन किया है उसका संक्षेप से पाठकों के समझने के हेतु यहां उल्लेख करेंगे।
योगशास्त्र में बयान है कि पवित्र पदों का आलम्बन लेकर ध्यान किया जाता है उसीको शास्त्रवेत्ताओंने पदस्थ ध्यान कहा है, जिसका स्वरुप बताया है कि नाभिकमल के उपर सोलह पत्ते वाले कमल के पुष्प का चितवन करे, और पत्ते पर भ्रमण करती हुई स्वर की पंक्तिका चितवन करना
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