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ऋषि - मंडल
एतद्गोप्यं महास्तोत्रं, न देयं यस्य कस्यचित् ॥ मिथ्यात्ववासिने दत्ते, बालहत्या पदे पदे ॥५७॥
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भावार्थ - इस स्तोत्रको गुप्त रखना चाहिए, हर एक मनुष्यको नही देवे ( योग्यता देख कर देना) मिथ्या दृष्टिबालेको देनेसे पद पद पर बालहत्या के तुल्य पाप लगता है । ( अर्थात् अयोग्य पुरुष इस स्तोत्र-मंत्रकी सिद्धि प्राप्त करे तो अनर्थ आदिका भय रहता है ।) आचाम्लादितपः कृत्वा, पूजयित्वा जिनावलीं ॥ अष्टसाहस्रिको जापः कार्यस्तत्सिद्धिहेतवे ॥ ५८॥
भावार्य - आयंबिल की तपस्या करके जिनेन्द्र भगवानकी अष्ट द्रव्यसे पूजा करे और इस मंत्रका आठ हजार जाप करे तो कार्य सिद्ध हो जाता है । शतमष्टोतरं प्रात, - पठन्ति दिनेदिने । तेषां न व्याधयो देहे, - प्रभवन्ति न चापदः ॥ ५९ ॥
भावार्थ - जो मनुष्य इस स्तोत्रके मंत्रकी एक माला अर्थात् एकसो आठ जाप नित्य- प्रति प्रातःकालमें करते हैं उनको किसीभी तरहकी व्याधि उत्पन्न नही होती और सारी आपत्तियां टल जाती हैं । अष्टमासावधिं यावत्, - प्रातः प्रातस्तु यः पठेत् ॥ स्तोत्रमेतत्महांस्तेजो, - जिनबिंबं स पश्यति ॥ ६०॥
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