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ऋषि मंडल-स्तोत्र-भावार्थ
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भावार्थ-आठ महिने पर्यंत मातःकालमे विधि सहित इस स्तोत्रका पाठ करे तो अर्हत् भगवानके बिंबका दर्शन ललाटमें कर लेता है। दृष्टे सत्यर्हतो बिंबे, भवेत्सप्तमके ध्रुवं ॥ पदमाप्नोति शुद्धात्मा, परमानन्दनन्दितः ॥ ६१ ॥ ____ भावार्थ-इस तरह जिस पुरुषको अर्हन् भगवानके बिंबके दर्शन हो जाते हैं, वह जीव सातवें भवमें मोक्ष पाता है, और मोक्ष स्थान परम आनन्दके देनेवाला है, अर्थात् जन्म जरा मृत्युसे रहित है। विश्ववंद्यो भवेत् ध्याता, कल्याणानि च सोचते॥ गत्वा स्थानं परं सोपि-भयस्तु-न-निवर्तते ॥६॥
भावार्थ-संसारके पुजनीय जो ध्याता पुरुष होते हैं उनहीका ध्यान किया जाता है, जो कल्याणके करनेवाला होता है, और जिनके ध्यान मात्रसे मोक्ष मिलती है और संसारका परिभ्रमण मिट जाता है । इदं स्तोत्रं महास्तोत्रं-स्तुतीनामुत्तमं परं ॥ पठनात्स्मरणाजापात्-लभ्यते पदमुत्तमं ॥३॥
भावार्थ-यह स्तोत्र साधारण नहीं है, यह तो महास्तोत्र है, जिसकी स्तुति-स्मरण-पाठ आदि करनेसे उत्तम पदकी प्राप्ती होती है, जिससे मोक्ष मुख मिलता है।
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