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ऋषि मंडल-स्तोत्र
भावार्थ-पातालमें रहने वाले देव, पृथ्वीपर रहने वाले देव, व्यन्तर व स्वर्गमें रहनेवाले विमानवासी देव सब मेरी रक्षा करो। येवधिलब्धो-ये-तु-परमावधिलब्धयः॥ ते सर्वे मुनयो देवा-मां-संरक्षतु सर्वदा ॥४४॥
भावार्थ--अवधिज्ञान और परमावधि ज्ञानकी लब्धिवाले सर्व मुनिराज सर्वदा मेरी रक्षा करो। दुर्जना भूतवैतालाः, पिशाचा मुद्गलास्तथा ॥ ते सर्वेप्युपशाम्यन्तु,-देवदेवप्रभावतः ॥४५॥
भावार्थ-दुर्जन मनुष्य भूत प्रेत वैताल पिशाच राक्षसदैत्य आदि श्री जिनेश्वर भगवानके प्रशादसे शांत होवें । ओ ही श्रीश्च धृतिर्लक्ष्मी,-गोरी चण्डी सरस्वती। जयाम्बा विजया नित्या, क्लिन्नाजितामदगवा ॥४६॥ कामाङ्गा कामबाणा च,-सानंदानंदमालिनी ॥ माया मायाविनी रौद्री, कला-काली-कलिप्रियाः४७ ____ भावार्थ--इन दोनो श्लोकोंमें चौवीस देवीयोंके नाम बताये गये हैं । (१) ही देवी, (२) श्री देवी, (३) धृति, (४) लक्ष्मी, (५) गौरी, (६) चंडी, (७) सरस्वती, (८) जया, (९) अंबीका, (१०) विजया, (११) क्लिन्ना, (१२)
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