________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
२४
ऋषि मंडल
अपेक्षा शरीर रहित निरंजन निराकार है, संतोष प्राप्त करानेवाला जिन्होने भवभ्रमणका अंत करदिया है एसे निरंजन निराकांक्षी-जिनको किसी प्रकारकी इच्छा नहीं है, निर्लेप संशय रहित एसा जिनबिंव है। ईश्वरं ब्रह्मसंबुद्धं, बुद्धं सिद्धं मतं-गुरु ॥ ज्योतीरुपं महादेवं, लोकाकोकप्रकाशकं ॥ १९ ॥
भावार्थ-उपदेश देनेवाले हैं, तीन लोकके नाथ हैं इसलिये ईश्वर हैं। आत्माका स्वरुप बताने वाले हैं इसलिये ब्रह्मरूप हैं, बुद्धरुप हैं, दोष रहित हैं, शुद्ध है, ज्योतिरुप हैं, देवोंसे पुजित-महादेव हैं, और लोक अलोकको निजके ज्ञानसे प्रकाशित करनेवाले एसे परमब्रह्म परमात्माका ध्यान करना चाहिए। अर्हदाख्यस्तु वर्णान्तः सरेफो बिन्दु मंडितः तुर्यस्वरसमायुक्तो, बहुधा नादमालितः ॥ २० ॥
भावार्थ-अर्ह शब्दका वाचक वर्णके अंतका अक्षर हकार है, और रेफ व बिन्दुसे शोभायमान है, और चौथा अक्षर स्वरका “ई” से अलंकृत है, जिस को मिलानेसे ध्यान करने योग्य "ही" अक्षर बनता है।
For Private and Personal Use Only