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ऋषि मंडल-स्तोत्र-भावार्थ
पूज्यनामाक्षरा आद्याः-पंचातोज्ञानदर्शनः ॥ चारित्रेभ्यो नमोमध्ये, हीसांतः समलं कृतः॥१०॥
भावार्थ-बीजाक्षर के बाद पंचपरमेष्टि नामके प्रथम अक्षर अ, सि, आ, उ, सा, लिखे ओर उनके आगे सम्यग दर्शन ज्ञान चारित्रेभ्यो नमः लिख कर चारित्रेभ्यो व नमः के बीचमें ही लिखे, इस तरह लिखनेसे सत्ताइस अक्षरका मूल मंत्र बन जाता है। इस मंत्रके आघमें ॐ प्रणव अक्षर लगता है, क्यों कि प्रणव अक्षर शक्तिशाली है, और मंत्रको बलवान बनाने वाला है। इसी कारणसे सत्ताइस अक्षरोंके पहले ॐ लगाना चाहिये, और मंत्र शाखके नियमानुसार इस ॐ अक्षरकी गीनती इस मंत्रके अक्षरोंके साथ नही की गई। जम्बवृक्षधरोद्वीप:-क्षारोदधिसमावृतः ॥ अहंदाद्यष्टकैरष्ट काष्टाधिष्ठरलंकृतः ॥११॥
भावार्थ-जम्बूक्ष को धारण करने वाला द्वीप जिस को जम्बूद्वीप कहते हैं । जिसके चारों तरफ लवण समुद्र है, एसा जो जम्बूद्वीप है वह आठों ही दिशा के स्वामी अत् सिद्ध आदि से शोभायमान हो रहा है। तन्मध्यसंगतो मेरुः, कूटलक्षरलंकृतः, ॥ उच्चैरुच्चैस्तरस्तार, स्तारामंडलमंडितः ॥ १२॥
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