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स्तोत्र-मंत्र-महिमा हुवा होता है, तो फिर अमुक उद्देष पूर्वक विशिष्ट वर्णों की की हुई सङ्कलना का बल तो अजीब प्रकार का हो उस में सन्देह ही क्या है ? ..
मंत्र पद के रचियता महापुरुष जितने दरजे सत्य संयम के पालने वाले होंगे उतने ही परिणाम में विशिष्टता का सम्भव है। इसी कारण मंत्र को भाषा में परिवर्तन किया जाय, या तद्गत अर्थ अन्य भाषा-छंद-पद्धति द्वारा कथित किया जाय तो वह किया हुवा परिवर्तन मंत्र की गरज को पूरी नही कर सकता। एसा परिवर्तन तो सामान्यतः अर्थभावार्थ समझने व श्रद्धा को विशेष मजबूत बनाने के हेतु से होता है। ___मंत्र का ध्यान करने वाले पुरुष को चाहिये कि वह जिस मंत्र का आराधन करना चाहता है उस मंत्र का यथार्थ स्वरूप समझ लेवे और उसकी शक्ति का प्रभाव स्मरण पट पर खड़ा करने के लिये मानसिक विशुद्धि क्रिया की तरफ पूरा लक्ष रखे । मंत्र के अधिष्ठाता कोई भी देव हो या देवी हो उनका नाम लेते ही उनका मूर्तिमंत स्वरूप स्मृति में आ कर खडा हो जाना चाहिये । उनका सारा वृत्तान्त उन के गुण उन की महिमा का स्मरण सामने ही खडा हो जाय इस तरह ध्यानमग्न होते हैं उन पुरुषों को देव-देवी के साक्षात् दर्शन होते हैं और अपूर्व लाभ मिलता है।
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