Book Title: Ratnakarandak Shravakachar
Author(s): Samantbhadracharya, Mannulal Jain
Publisher: Vitrag Vigyan Swadhyay Mandir Trust Ajmer
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साकार करने के लिए उन्होंने अपने मित्र श्री धन्नालालजी कासलीवाल (फौजदार ) आदि के सहयोग से विक्रम संवत् १९४२ ( सन् १८८५) में जयपुर में मनिहारों के रास्ते में ही एक जैन पाठशाला की स्थापना की और इस प्रकार अति आवश्यक कार्य का शुभारम्भ हुआ। प्रसिद्धि के साथ साथ इसकी निरन्तज प्रगति भी होने लगी। यहाँ धीरे-धीरे जैन सिद्धान्त के प्रमुख सभी ग्रंथो के सुचारू अध्ययन की व्यवस्था होती गई । वट-बीज के रूप में प्रारम्भ इस छोटे से पाठशाला ने तब से निरन्तर प्रगति करते हुए अब सौ वर्ष पूरे कर लिए। और यह गौरव का विषय है कि दि. जैन आचार्य संस्कृत महाविद्यालय के रूप में आज यह राजस्थान का प्रथम श्रेणी का आदर्श महाविद्यालय है। यहाँ से अध्ययन किए हुए उच्च कोटि के विद्वानों की लम्बी परम्परा है। यह सब पं. सदासुखदासजी की प्रेरणा व उनके शिष्यों के प्रयत्नों का ही सफल परिणाम है।
पूनमचंद लुहाड़िया
( संस्थापक – अध्यक्ष) वीतराग विज्ञान स्वाध्याय मंदिर ट्रस्ट
अजमेर
दि. १ मार्च ९६
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