Book Title: Rajasthani Sahitya Sangraha 02
Author(s): Purushottamlal Menariya
Publisher: Rajasthan Prachyavidya Pratishthan Jodhpur
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अक्षर संख्या १३ से १५ । लिपिकाल अज्ञात है। प्रतिमें कर्ताके नाम आदिका उल्लेख नहीं है और पाठ भी अशुद्ध है।
प्रति-ग.
श्री रघुवीर लायब्ररी सीतामऊसे प्राप्त प्रतिलिपि । प्रतिलिपिके प्रारंभमें निम्नलिखित उल्लेख है--
"श्री रघुवीर लायझरी, सीतामऊके लिये प्रतापगढ़ राज्यमें प्राप्य प्रतिसे नकल करवाई गई।"
संभवतः स्व० डॉ० गौरीशङ्कर होराचंद अोझाने भी "प्रतापगढ़ राज्यका इतिहास" लिखने में इसी प्रतिका उपयोग किया हो।। मूल प्रति २२ पत्रोंकी है जैसा कि प्रस्तुत प्रतिलिपिसे प्रकट होता है । प्रतिके प्रारंभमें ही कर्ताका नाम इस प्रकार लिखित है
"महाराज बादरसिंघजी किसनगढ़रा राजारी करी" प्रतिके लिपिकर्ता और लेखन-कालका उल्लेख इस प्रकार है--
"ईति श्री वारत समपुरण लोषीतं ग भ्राह्मांमण अोदीच मगनेस दौलतरांम श्री कल्याण रस्तु सुभं भवस्तु ॥ श्री श्री ॥ संवत १९८' 'प्रसाड सुद ३ त्रीतीया भोमवासर ॥ श्री ॥ श्री ॥श्री॥ श्री॥
॥ गाथा ॥ काठलधर कमनीये नगर प्रताप दुर्गजह नपती ।। उदयसिंह अभिधानं ॥ भानुवंस भूषन कुल रान ।। १ ।। या वार्ता भवाया मगनीरामका हातसूं लिषारणी ।।
प्रतिमें उक्त ज्ञातव्य मह
प्रति-घ.
यह राजस्थानी शोध-संस्थान, चौपासनी, जोधपुरसे प्रतिलिपि रूपमें प्राप्त हुई है। प्रतिलिपिके अन्तमें निम्नलिखित उल्लेख है -
"लिखितं महडू राजूराम जोधनयर मध्ये कवराजा श्री भारथदांनजी वाचनार्थं ॥ श्री॥ समत् १६०३रा चैत्र सुद ११ सोमवासुरे ॥ श्रीरस्तु ॥ सुभं भवत् ॥ कल्याण महत् ।। वाचे सुणै तिणांसू राजूमामरा श्री राम-राम बांचसी।
राजस्थान रिसर्च सोसाइटीके लिये भगवतीप्रसादसिंघ वीसेन । जोधपुर, कातिक सुद ३, बुधवार, संवत १९६३ वि. ता. ३० अक्टूबर, १९३५॥"
इस प्रतिलिपिकी मूल प्रति अप्राप्य है। प्रतिलिपिका मूलसे मिलान नहीं हुआ है और पाठ भी संदिग्ध है।
१ स्व० डॉ० गो० ही० अोझाने उक्त वार्ता प्राप्त होनेका उल्लेख किया है। प्रतापगढ़राज्य का इतिहास, वैदिक यन्त्रालय, अजमेर, पृष्ठ सं० १८५ ।
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