Book Title: Rajasthani Sahitya Sangraha 02
Author(s): Purushottamlal Menariya
Publisher: Rajasthan Prachyavidya Pratishthan Jodhpur

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Page 134
________________ [ १०१ परिशिष्ट मर जाणो संसारमें, कई य न प्रावे लार । खावो नै खूब्यां करो, करो जीवरा लाड़ । जीवड़ा सरीखा पांवणा, मले न दूजी बार । चुणियोड़ा देवळ ढस पड़े, जनमियोड़ा नर मर जाय । काचा घड़ा नरजन पूतळा, काची मरदारी देही । असी चूडी काचरी, फूटे न फटीको होय । उगियोड़ा सूरज प्रांथसी, फूलियोड़ा कुमलाय । [सूम वर्णन ] कई न अावे लार, सूमरे गाड़ी भरिया लाकड़ा । खांडी हांडी लार, सूमने जाय खेतरां उतार दो । गुरूदेवरी आण, सूमसू धरती मेलो प्रारजी। गुरूदेवरी प्राण, सूमरा धूआं धुंधला नीकळे । गुरूदेवरी प्राण, पाछो मेलोजी भोळा रामजी । सतलोकरे मांय, पाछो मेलोजी भोळा रामजी । कोठामें रह गयो धान, म्हारे गड़िया रह गया टूकड़ा। धळ व्हियो धन माल, सगो कोई नी रे बेटो बापरो। पूत न परवार, सगो कोई न जो घररी गोरज्या । सगो है न संसार, सगो कोजै रे अगनि देवता । वा लेलो सुधार, सगी कोजो जी बनरी लाकड़ी । उठ जलेली लार, सगी कीजो जी बनरी लाकड़ी। [ रावत भोजाको दानशीलता और ऐश्वर्य ] गुरूदेवरी प्राण, ऊंचा बंधाऊ जी हररा देवरा । गज गरियांरी नींव, म्हूँ तो कूड़ा खुदाऊ रे बावड़ी । मायाने किण विध खाय रे मायाने ऊंडी गाड़ दो । दो ने शीशो ढळाय, मरदां काळ दुकाळां काढसी । गुरुदेवरी प्राण, ताळा जड़ दो वीजळसाररा । बगड़ जड़ो कुमाड़, मरदां काळ दुकाळा काढसी । गुरुदेवरी आण आपां मांडल ढाबा मालवो। आपां बळती ढाबा मेवाड़, रे जातोड़ो परजा ढाब लां। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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