Book Title: Rajasthani Sahitya Sangraha 02
Author(s): Purushottamlal Menariya
Publisher: Rajasthan Prachyavidya Pratishthan Jodhpur

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Page 136
________________ [ १०३ परिशिष्ट पेट पीपळरो पान, देवीरे दांत दाड़म कर बीजड़ा । गुरुदेवरी प्राण, देवीरे नेतां सुरमो सारणो। कोयां काळी रेख, देवीरे नेताजी सुरमो सारणो। गुरुदेवरी प्राण, देवीरी जीभ कमलरो पानड़ो । होठ फेफरा फूल, राणीरे जीभ कमलरो पानड़ो। कोयां काळी रेख, देवीरी चोटी गई पताळ । गुरुदेवरी आण, अग्गमरो झोलो पावसी । अगमरो झोलो आवसी, पच्छमने लळ जाय । पच्छमरो झोलो आवसी, अग्गमने लुळ जाय । चोफेरा वाजे वायरा, टूक टूक हो जाय । थने सूवो झपट ले जाय, हंसती बोले बेण जी। . गुरुदेवरी आण, राणी सीप भर पाणी पिवे । गुरुदेवरी आण, राणी बोळ्या-पानमें जीमसी । गुरुदेवरी आण, धणारी खोपड़ी में खाय । चोथो दाणो चांवल तो राणी पेट फाट मर जाय । [ युद्धसज्जा और युद्ध ] गुरुदेवरी आण, भाटी नूतांजी जैसलमेररा। भीलवाड़रा भील, मरदां गढ़ देवलरा देवड़ा। भीलवाड़रा भील, मरदां गढ़ चित्तोड़रा चीतला । गुरुदेवरी पाण, काळू मीयों सनवाड़। काळ मीयों सनवाड़, चढ़ ने वेगो आवजे । महाभारतरे माय, काळ चढ़ने वेगो आवजे । गुदेरुवरी प्रोण, काळू रे ढाल उड़े आगे फरे । गूजर गावे गीत, काळू री बरछी मांगे आंतड़ा। तंग कसी तरवार, काळू रे छुरियां चमके वीजळी रे जोधो जगमाल, नानी वयरो बाळक्यो। हुयो जोध असवार, गयो खारीरे खेतमें। भारत करवा लागो सूरमो, धरती रगत धपाई । छः महीनारो भारत झझियो, माथो देवी लीधो। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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