Book Title: Rajasthani Sahitya Sangraha 02
Author(s): Purushottamlal Menariya
Publisher: Rajasthan Prachyavidya Pratishthan Jodhpur

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Page 138
________________ परिशिष्ट [ १०५ राग रामकरी सुतडीने काही छेडो रूडा महाने श्राळसियो हो आवै । द्रिग हिमैं महारै पागा छुवावौ या नहो बात सुहावै ॥ १ हौ लाडीजी ौ कई किसडौ सुभाव । पिय प्राधीन रहैं कर जौड्या तौहो भौंह चढाव ॥ २ राग ललित उणीदा छो जी रातरा। वैण स्थिल अरु नैण झक्या ही पावै, लग बैठा परभातरा । पलकां पीक अधर फीकै रंग, रस अळसाया गातरा ।। ३ उरणीदा वौलो घणा धूमै छ। झपक उझक मिल लालच लुभावै छै । अजब छकणकी झूमै छ । उणीदी आषडल्यां पर घूमै छ । लालच लगी झमक मिल झपकै । लाज दबी झुकि झूमै छै ।। ४ अाज हुवौ छै मनरौ भायौ, राज सहेली व्है गुण गास्यां ।। पना सालग्रह कुंवर पांवणा, फिरचौ दिन कद पास्यां ॥ षुसी जनमरी मांहि जनम फल, क्यातणो जितास्यां । यां केसरयानै लडाय कर छकस्यां, और छकास्यां और छकास्यां ॥ ५२ नवल सषीजी भल आया हो राज । साँझो काज फुल वीणण पायोजी फल आज । इहि वन फूली सी फिरत अकेली तूं पाली सांवरी है। सांझीकौं फूल गरै डौरी हग फल मन भरै भावरी है ।। ५३ रहै दौऊं बदन निहार । फूलन स्यांम सषी इत उत स्यांमा सकुमार । लता किरनमैं रह गये इत उत सके कौंन निवार । नागरिया मिले नैन दुहूनके वडे ठगन ठगवार ॥ ५४ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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