Book Title: Rajasthani Sahitya Sangraha 02
Author(s): Purushottamlal Menariya
Publisher: Rajasthan Prachyavidya Pratishthan Jodhpur

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Page 135
________________ परिशिष्ट गुरुदेवरी प्राण, घोड़ीरै पगां ठळकती नेवरी । चांदीरी खुरताळ, घोड़ीरे हरियाला नेवर वाजणा । घमके घूघरमाळ, घोड़ी नानासणारी नेवरयां । गुरुदेवरी आण, घोड़ीरे झूल बणी जंगाल जी। गुरुदेवरी आण, घोड़ीरे दुमची फूंदा पाटका । गुरुदेवरी प्राण, घोड़ी ताजी जुगको ताजणो। सतजगरो पलाण, घोड़ीरे लाख लाखरा पागड़ा । गुरुदेवरी आण, घोड़ीरे सिंगाड़ो सोने जड़यो। हीरा तपे ललाड़, घोड़ीरे मोती बालां जड़या। लाला जड़ी लगाम, चांवड़ने तुरों तो ओपे घणो। तुएँ तार हजार, रे वेलामें चमके वीजळी । [ जयमतो विरह-वर्णन ] गुरुदेवरी प्राण, हीरा काजळसू काळी पडूं । रूप देहीरो जाय, छोरी काजळसू काळी पडूं। बावां हाथरी मूंदड़ी, छोरी रळकण लागी बांय। फूलांसू फोरी पडूं, छोरी गेलामें पाई नींद । नजरसूं देखू रावत भोजने, जदी खाऊं धान । पछ मगरांरा मोर, आज मीठा घणा बोल्या । घणा बोल्या दादर मोर समन्दरा हंस जी । दियाड़ो घणो रूड़ो लागे पो हीरजी। छै दनरी ली रजिया भोज, यो छटो महीनो जाय । [ जयमती सौन्दर्य-वर्णन ] भूल गया भगवान, भाभी ! वण साँचे दो घड़या । भूल गया भगवान, भाभी ! नहीं देवळ फूतळी । नहीं नारांमें नार भाभी ! नहीं देवळ फूतळी । गुरुदेवरी प्राण, भाभी जांघ देवळरो थंभ जी । पिण्डी बेलण होय, भाभी एड़ी तो सुपारो वणी । नाक वणी तलवार, देवी मुख गंगा खळक रही । गुरुदेवरी प्राण, राणीरे गोड़ामें गुणेशजी। गोड़ामें गुणेशजी, देवीरी कमर केळीरी कामड़ी। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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