Book Title: Rajasthani Sahitya Sangraha 02
Author(s): Purushottamlal Menariya
Publisher: Rajasthan Prachyavidya Pratishthan Jodhpur
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प्रतापसिंघ म्होकमसिंघरी वात ले उण नाजरनूं राहमैं हीज मारियो। पण वो तो पातसाह अवरंगजेब । जिणसूं छिपे नही किणहीरा मनरो फरेब । किणहीरा मनमै जिकोई काम प्रावै जिको नौ अवलिया थको पहली हो पाय जावै । अर हलकारा' घड़ी घड़ीरी षबर हजूर गुजरावै । तिकातूं किण भांत छिपै या बात । हलकारा, वाकानवीस, कुफियानवीस, डाक चौक्यां' अरज लिखै दिन रात । सो पातसाहसुं छिपी अरज पहोंती । सिरबिलंदषांसू रीस ठांणी । पर कैद कर किल चढावणरी मन मांहि प्रांणी। पण अजीमसाह आ मरजी पिछाण सोच कीधो अप्रमाण । स्याहजादो ईणनूं किणरै सरण म्हेल' । अवरंगजेबरी क्रोधानळ कुंण सीस झेलै । ईंण भांत बिचार करनें कहियो। पातसाहरो खूनी प्रागै भी म्होबतषां देवगढ हीज सरणे रहियो । दूजा राजा रांणा राव सो तो पातसाहांसू कोई न रोपै पाव । प्रा बात स्याहजादारे मन भाई । तद देवगढनै सारो हकीकत लिष चलाई । तिको देवगढरो घर किसो हेक ? दोहा-सकज दिली चितोड़सू, प्राडो सदा अभंग । रिण गहलो घर रावतां, जद तद मंडै जंग' ।
बात सो देवगढनूं हकीकत लीषी। सरबुलंदनै सरण राषीजै। अर १. हलकारा - हरकारा, खबरनवीस । २. गुजराव - विदित करें। ३. वाकानवीस'''डाक चौक्यां - मुगलकालमें समाचार वाकयानवीस, खुफियानवीस
(गुप्तचर) और डाक चोकियों द्वारा प्राप्त किये जाते थे। ४. पहोंती - पहुंची। ५. ठांणी - ठानी, निश्चित की। ठांणी, ठाण, थाण, थानक आदि शब्दोंका विकास
संस्कृत शब्द 'स्थान' से हुआ है। ६. सोच' 'अप्रमाण - असीम चिन्ता की। ७. किरणर 'म्हेलै - किसकी शरणमें रक्खे। ८. पातसाहांसू रोपं पाव - बादशाहके विरोधमें कोई खड़े नहीं होते । ६. सकज''अभंग - सदा ही अपने कार्यके लिये दिल्ली और चित्तौड़का विरोध करने
वाला। १०. रिण ‘रावतां - युद्ध के लिये उन्मत्त रावतोंका घर (प्रतापगढ़) । ११. जद'जंग - जब तब, बार-बार युद्ध करता है ।
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