Book Title: Rajasthani Sahitya Sangraha 02
Author(s): Purushottamlal Menariya
Publisher: Rajasthan Prachyavidya Pratishthan Jodhpur

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Page 115
________________ ८२ ] वीरमदे सोनीगरारी वात पडीयौ । सोनिंगरी बेटा दोनुं ही लेने धिणलं ग्राई । 1 2 चूक पंजू पायक सुणीयौ । तर घोडै चढ़ नीसरयौ । सो दीली अलाबदी पातिसाहसुं' मिल्यौ । पातसाहनै सिरूंरा घाव डाव सीषाया । तरै पातसाह रिंकीयो । एक दिन पातसाहसुं रमतां कह्यौ । क्युं बै' पंजू तो बराबर पेलै तँसो कोई पातसाही में है के न्ही । तर पंजूं कह्यौ । जोळोरमै कांनडदेरा बेटा वीरमदे मोसँ बी कुछ सरस है । तर जालोर परवांना मेल्या' । कांनडदेजी परवांना वांच्या' IA घणो सोच हूवो नैं जांण्यौ पंजुडारा काम छै । पातसाहसुं जोर लागे न्ही' । सबरो " मोहरत सषरा श्रवण 11 हूग्रां प्रसवार हजारधसुं' चढीया सो दीली आया | पातसाहने मालम हुई। अंबषासमै ३. रिभयो - प्रसन्न हुआ । ४. बै- सम्बोधन के लिये खड़ी बोलोका हीनतासूचक प्रयोग । १. अलाबदी पातिसाहसं - अलाउद्दीन बादशाहसे । २. सिरा घाव डाव - सिरके श्रर्थात् उच्च श्रेणीके प्रथवा शुरूके, प्रारंभ के ( ? ) घाव दाव । ५. मोस... सरस है मुझसे भी कुछ बढ़ कर है । ६. परवांना मेल्या - एक प्रकारका पत्र, प्रादेशपत्र भेजा । ग. प्रतिमें श्रागे यह पाठ है- 'तिण मांहे लिखियो, तोने ही सिरदार हजूर श्रावज्यो नहीतर हमकूं फेरा दिरावोगे ।' ६. पातसाहसुं न्ही - बादशाह पर बलका प्रयोग नहीं किया जा सकता । १०. सषरो - अच्छा। 12 ७. वांच्या - पढ़ा ( वाचन - सं.) A - A प्रस्तुत अंशकी राजस्थानी मुसलमान पात्रोंसे सम्बद्ध होनेसे खड़ी बोली प्रभावित है । -- 1 5. ख. प्रतिमें यह पाठ है- 'अँ पंजूरा चाळा छे । तर तीने ही प्रालोच्यौ । जो बेंस रहोजै तौ दिल्लोरा धणीसुं पोच श्रावां नही । न हजुर गयां काई वात झूठी साची रफै दर्फ करिस्यां यौं जाण घोडा हजार १ री गांठ करि सबरें मोहरत सबरां सांवण चढ़ीया ।' ११. श्रांबरण - श्रवरण, सुने जाने वाले शकुन ( ? ) १२. हजारधसुं सहस्रार्द्ध (सं.), आधा हजार, पांच सौ । १३. अंबषासमै - ग्राम खासमें श्रौर २ दीवान-ए-खास । 13 Jain Education International For Private & Personal Use Only मुगल सम्राटोंके दो दरबार होते थे। दीवान-ए-श्राम www.jainelibrary.org

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