Book Title: Rajasthani Sahitya Sangraha 02
Author(s): Purushottamlal Menariya
Publisher: Rajasthan Prachyavidya Pratishthan Jodhpur
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१४] . वीरमदे सोनीगरारी वात
तिण समीय उमादै रांणी थाल माहै मोतीयांरो हार पोवती थी सो सुरंगरो धको लागो । सो मोती षडहडीया ।
तरै रांणी जायनै वीरमदेजीन कह्यौ। अठ सुरंग लागी दीसै छै । तिस तेल मण हजार उनो करायने तइ कीधो छ। तिस सुरंगमै बारी हुई तिणमै तुरत उन्हो तेल नवायो । तिको पालो' साथ ३०००० तेलसुं बल भस्म हूवा । ___ तरै वीरमदेजी जांणीयो इण मोरचै गढ भीळसी' । कंवरजीर रसो. रजपूत जीमै तिकै सोनारा थाळमें जीमें। चलू करनै उठ जाय। वाघ वानर जीमै थाली मंजायनै थाळरै चिबठीरा ठोलारी' मारै सौ आंगल २ री टीकडी उड पडै । सोनार सांधै। तिस कंवरजीनै रसोडदार कह्यौ। वाघ वानर मनमै पोरस11 घणो जांण छ । हमेसां थाल भांजै । रसोडदारनै रीस करने परो मेलीयो । ___ पछै वाघ वानरनै बुलायनै सूरंगरो मोरचो दीधो । पिण कंवरजी एक अरज छ । लोह एक वार चलावसु तिण वास्ते तरवार कटारी हजार २३३ मो कन्है मेलावो" पछै रजपूतरा हाथ देषीजै। इसी
१. मोती षडहडीया - मोती हिले, मोती चलायमान हुए। यह प्रसङ्ग ख. ग. प्रतियों में
नहीं है। २. उनो करायने - गरम करवा कर। ३. तइ-तैयार, बहुत गरम । ४. नवायो - नमाया, बहाया। ५. पालो - पंदल सिपाही। ६. यह प्रसङ्ग ख. और ग. प्रतियों में प्रागे दिया गया है। ७. भीळसी-नष्ट होगा। ८. चलू करन - प्राचमन कर, पानीसे मुंह साफ कर। ६. चिबठीरा ठोलारी - अंगुलीके जोड़के उठे हुए भागको । १०. सोनार सांध- सोनो जोड़ता। ११. पोरस - पुरुषार्थ । १२. यह प्रसङ्ग ख. और ग. प्रतियों में नहीं है। १३. लोह'चलावसु- एक हथियारका प्रयोग एक बार ही करूंगा। १४. मो कन्है मेलावो-मेरे पास रखवायो।
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