Book Title: Rajasthani Sahitya Sangraha 02
Author(s): Purushottamlal Menariya
Publisher: Rajasthan Prachyavidya Pratishthan Jodhpur
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वीरमदे सोनीगरारी वात
[ ६३ मोनै जालोर पोहचावणो । रोहीठसुं उलीकां न्ही । कोसां चार गांव ढाहरीयां सांसण रांणगदे सोनिगरै दीधी ।
उठासुं गढ जालोर पोहता । कान्हडदेजीसुं मिलीया । दिलीरी हकीगत सारी ही कही । गढरो घणो जाबतो करणो । रजपूतांरो बारै वरसांरो रोजगार चुकाय दिन्हो नै कह्यो। गढरी सरम थांहरै भुजै छै । गढ घणो फूटरो दीसै त्यूं करणो ।
तरै रजपूत बोलीया। रावजी सलामत । राजरो लूण घणो फूटरो दिषावसा'।
साह वेगमने साथे लैनै पातिसाह लाष १ घोडासु जालोर नेडा" कोसां ४ उरे' डेरा कीधा । मोरचा लगाया। नालीयां चाढी" । गढरै आस पास फोजा लागी।।
वरस १ राड हूई। गढ हाथ प्रावणरो ढंग कोई न्ही । तरै पातसाह वेलदार13 ५०० बुलायनै गढरै सुरंग दिराई ।
१. रोहिठसू उलीकां न्ही - रोही को (जंगल प्रदेशको) उलांचे नहीं (?) २. सांसरण - शासन, दानमें दी हुई जमीन । ३. पोहता- पहुंचे। ख. प्रतिमें पाठ इस प्रकार है-'तर सोकोतर सांवली हुईन कह्यौ
म्हारी पूठि ऊपरा चढौ। तर रांणगदे पूठ ऊपरा बैठौ नै सीकौतरि उडी तिका रात घडी २ पाछिली थकां गढ माहे मेल्हीयो। सोकोतरी पाछी प्राई । तठा पर्छ झीथडारी थडौ कराय झीथडार नाम माम वसायौ तिको प्रबारूं कूबाजीरौ झोथडौ
कहींज छ।' ४. गढरी "भुजै छ - गढ़को लज्जा तुम्हारी भुजाओं पर है। ५. घणो फूटरो- बहुत अच्छा, श्रेष्ठ । ६. दीस - दिखाई दे। ७. राजरो' 'दिषावसां - आपका खाया हुमा नमक बहुत अच्छी तरह दिखावेंगे। ८. नेडा-समीप। ६. उरे - इधर, इस भोर । १०. नालीयां चाढी - तोपें चढ़ाई गई। तोपें मुख्यतः मुगलकालीन युद्धों में प्रचलित हुई थी। ११. ख. प्रतिका पाठ इस प्रकार है-'जर घडी २ नाला सौ जू [ॐ]ट जूतं तिसी सईकडांबंध
लोधी । जिके दौय मण तीन मणरो गोलो षाय । हाथी पूठ टल्ला दै तरै सि तिसी नाला लोधी । और नालारी किसी गणत छ । अगन बरसे। इसी भांतिसु फोजरो
चकारी लीयां गढ लागा । साह बेगमरो चकडोल साथे छ ।' १२. राड - राड़, लड़ाई। १३ वेलदार - भवन-निर्माणमें काम करने वाले मजदूर।
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