Book Title: Rajasthani Sahitya Sangraha 02
Author(s): Purushottamlal Menariya
Publisher: Rajasthan Prachyavidya Pratishthan Jodhpur
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१६ ] वीरमदे सोनीगरारी वात वीरमदेजी मसकरी कीधी। आज दहीया मतो भुंडो करै छै । सही तो गढ भेलावसी।
इसो सुणनै बैनोइ कहै। कंवरजी मुवांसु किसी मसकरी करो। तरै वीरमदेजी कह्यौ। थे तो मुवांरा जीवता भाइ छौ । थे मदत करो। भायांरो वैर वालो । तरै दहीये कह्यौ। मोटो बोल साहिबने साजै । ___गोठ जीमतां वेरस' हुवो। उठासु उठनै माणस तो मारोठ परबतसरनै पोहचाया । आप नीकलनै पातसाहसुं मीलीयो । हकीकत सारी कहीं । माहे तो सांमांन षूटो । राज पाछो कूच करो । हू गढरो भेदू छु । गढ भेलावसुं।
प्रभाते' कूच हुवो सो जालोरगढ दोला' डेरा दीधा। मोरचा लागा। सुरंगमै दारूरा' थेला भराया। पछै लगाई। सोर उडीयो। तिणसुं गढरै बारो° हूवो।
तणी सुरंगरै मोरचै वाघ वानर बैठो छ। तिण सुरंगमै पैदल साथ चढनै गढरै बारै आवै तिणनै वाघ वानर घाव करै सो मरै । एक लोह करै । मारतां मारतां हजार ४ पैदलरो गरो हूवौ' । सगला प्रावध नीठीया । तुरक होकारो कर करने आया। तरै तरवार विनां
१. मतो भुंडो करै छै - बुरा विचार करते हैं। २. मुवांसुं - मुर्दोसे, मरे हुएसे। ३. भायांरो वैर वालो- भाइयोंके बैरका बदला लो। ४. ख. प्रतिमें यह पाठ है 'वडा सिरदार नर नींदवीज नहीं। नरांरी प्रणमापी राशी
छ। चाहै ज्यूं करें। न म्हे तो थांहरा भलचीत छां। पिण मोटा बोल तो
श्री नारायणजीनै छाजे।...' ५. वेरस - मनमुटाव । ६. भेदू- भेदिया, भेद देने वाला। ७. प्रभाते - प्रातःकालमें। ८. दोला - चारों ओर। ६. दारूरा-बारूदके । १०. बारो- छेद । .११. गरो हूवौ - ढेर हो गया। १२. सगला प्रावध नीठीया - सभी प्रायुध (शस्त्र) समाप्त हो गये। १३. होकारो-किलकारी।
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