Book Title: Rajasthani Sahitya Sangraha 02
Author(s): Purushottamlal Menariya
Publisher: Rajasthan Prachyavidya Pratishthan Jodhpur
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वीरमदे सोनीगरारी वात
[ ६७ वाघ वानर उभो। फोज आई देषनै हाथ पछाडीयो सो वैणी माहसु हाथ झड पडीयो। हाड तीषो नीकलीयो तिणसुं लोह करै । तिको जांण कटारी वावै छै । इण भांत ४० ते ५० पाडैनै आप पडीयो।
तरां वीरमदे कह्यौ। आलम पनां। रजपूतरो वट हिंदु षत्री धरम' जिण मुंहडै राम जपीयो तिण मुंहडै कलमो न केहणी आवै । पिण श्रीरामजी करै सो कबूल छै । ___इसो सुणनै पातिसोह बोल्या। हम तो व्याह हिंदुकै राह कबूलाया था। पिण तुमार तो नका पढणकी दिलमै आई। जावो वीरमदेकुं संपडावौ' । काजी बुलाय नका पढावौ । ___चाकर वीरमदेने दूजे डेरें ले आया। कमर षोली। वागारा चहिरबंध षोलीयो । तरै प्रांतारो ढेर हूवो नै वीरमदे नेत्र फेर दीया ।
तिसै चाकरां पातिसाहनै कह्यौ । हजरत । वोरमदे पेट परनालन' आया था सो भिस्तकुं पोहता।
श्रा वात वेगमकुं कही । तरै वेगम कह्यौ। आलम पनां वीरमदेका सिर काटनै ल्यावो। उनका सिरसुं फेरा लेउंगी। मैरा पहला भवका षांवदा है। इणकै वास्तै मै करोत लीधी। आगै छ वेला इणनै
१. वेणी माहसु-कलाईमेंसे। २. पार्डन - गिरा कर, मार कर। ३. षत्री धरम - क्षत्रिय धर्म । ४. ख. प्रतिमें यह पाठ है ..गऊ पुजां । तुलछी मांनां। श्रीसालगरांमजीरो चरणा
मृत ल्यां । वामण षटदरसणरै प्राधीन रहा नै जिण मुषसुं श्रीराम राम जप्यौ तिण
मुषसु असुर मंत्र कलनौ कहिणी नावै । पिण श्री परमेस्वरजी कर तिर्फे प्रमाण छ ।' ५. कबूलाया - कबूल करवाया, स्वीकार करवाया। ६. ख. प्रतिमें यह पाठ विशेष है ‘साहिब एक है। राह दौह कीया है।' ७. संपडावौ - स्नान करवानो। ८. दूज - दूसरे । ६. वागारा चहिरबंध - बागाके (एक प्रकारको मुगल-कालीन घेरदार अंगरखीके) बंधन । १०. परनालन - चीर कर, काट कर। ११. भिस्तक पोहता - भिश्तको (बहिश्तको) पहुंचे। १२. पैहला भवका षांवद - पूर्व जन्मका पति ।
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