Book Title: Rajasthani Sahitya Sangraha 02
Author(s): Purushottamlal Menariya
Publisher: Rajasthan Prachyavidya Pratishthan Jodhpur

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Page 131
________________ ६८ ] वीरमदे सोनीगरारी वात परणी छु । प्रा सातमी वेला छ । दूहौ- मरू मुंछ मटकडै', अवरस नांपु झार । वर वसं[रू] तो वीरमदे, रहुँ तो अकन कंवार ॥ १ पातिसाह प्रागै वात सगली कहो। वीरमदै नमीयो नही । वीरमदेरो माथो काटनै साह वेगम कन्है थालमै घालनै ले गया। ___वेगम सांमी' आई तरै मुंहडो फिर गयो। तरै वेगम कह्यौ । कंवरजी साहि[ब] मै तो करोत लैतां भव २ तंहीज' भरतार मांग्यौ है नै राज इणहीज भव मांग्यौ । जे इणसुं वाड कांटो देज्यो मती । राज तो रुसणो जिसोहीज निरभायो । हूं तो फेरा ले1 सती होसुं। इतरो सुणतां मुंहडो फिरीयो। साह वेगम फेरा लैनै पातसाहने कह्यौ । मोनै दाग द्यौ । तरै पातसाह कयो । सात भवरो षांवद छै । सत करण द्यौ । १. परणी छु- विवाह किया है। २. वेला- समय, संस्कृत शब्द है । ३. मटकडे - मरोड़। ४. अकन कंवार - निपट कुंवारी, कन्या । ___ यह दूहा ख. और ग. प्रतियोंमें नहीं है । ५. सगली - सारी, समस्त । ६. घालन - डाल कर। ७. सांमी - सामने । ८. तूंहीज - तुमको हो। ६. वाड कांटो देज्यो मती - वाड़ कांटा मत देना, एक मुहावरा है, जिसका तात्पर्य किसी प्रकारको बाधा नहीं देनेसे है। १०. राज तो निरभायो - प्रापने तो अपना रोष वैसा ही निभाया । ११. फेरा ले - विवाह कर, विवाह-संस्कारमें अग्नि-परिक्रमा की जाती है । १२. मोनै दाग द्यौ - मुझे जलाओ, मेरा दाह-संस्कार करो। १३. सत करण द्यो - सती होने दो। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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