Book Title: Rajasthani Sahitya Sangraha 02
Author(s): Purushottamlal Menariya
Publisher: Rajasthan Prachyavidya Pratishthan Jodhpur

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Page 124
________________ वीरमदे सोनिगरारी वात दुहो - रणका रुणझणकेह', राय प्रांगण रमीयो न्ही । तो पहरिस केम पगेह, वड नेउरी वणवीरउत ॥ १ तिसै अमल कर कमर बांध घोडै भींथडे असवार होय कुचरी तयारी कधी । तरै आसो चारण बोलीयो । I दूहो - तगा तगाइ मत करें, बोलै जबां संभाल । 5 नाहर र रजपूतनै, रेकारें" ही गाल' ॥ १ तिसै रांणगदेजी सुणत समान कटारी काढने तगाने वाही' सा तगो तो धरती भेलो हूवो" । भाद्रवारी वीज" पडै ज्युं प्रजांणचूकरी " तीन कटारी लागी । सो तगानै मार लीन्हौ । 12 1 साथ कौ । थेागा पाछा होज्यो । म्है तो गढ जालोर जाय पागडो छाडसां । गजी नीकल्या | हवैली मांहे रोल पडी । सेंहर हलकै चढीयो । लावदी पातसाह है । [ १ १. रुणझरग केह - झनकार करती । २. वड नेउरी - बड़ी नेउरी अर्थात् बेड़ी । ३. वरणवीरउत - वणवीरका वंशज । श्रागे ख. प्रतिमें यह पाठ है- 'श्रौ हौ सांभलि रांगदे कह्यौ । मिरजाजी अमल करु पछै हुकम प्रमाण छे । तगं को खूब कडवा श्ररोग ल्यौ ।' ४. ख. प्रतिमें यह पाठ है-कटारी बांधीने झींथडे प्रसवार हुवा। तरै त का है। होंदू अजब गिवार है । घरजतां माहे घोड़े प्रसवार होवे छे।' ५. नाहर - शेर । ६. रेकारें - 'रे' और 'अरे' श्रादि होनतासूचक सम्बोधन । ७. ख. प्रतिमें यह दूहा अधिक है - ' तगो न जांण तोल, मूरख मछरीकां तो । वायक सुणत कुबोल, मार के प्रा मरे ॥२' ८. सुरणत समांन - सुनते ही । ९. वाही चलाई, प्रहार किया 1 १०. धरती भेलो हूवो - धरतीके शामिल हुश्रा, धराशायी हुना । ११. वीज - बिजली । १२. प्रजांणचूकरी - अचानक हो, विशेष देखिये इसी पुस्तककी टिप्पणी, पृष्ठ सं. २७ । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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